Re: ~!!आनन्दमठ!!~
शांति मरने जा रही थी, लेकिन उसने मृत्यु के समय स्त्री-वेश धारण करने का निश्चय किया था। महेंद्र ने कहा था कि उसका पुरुष वेश ठगैती है, ठगी करते हुए मरना उचित नहीं। अत: वह साथ में अपना पिटारा लाई थी। उसमें उसकी पोशाक रहती थी। इस समय नवीनानंद पिटारा खोलकर अपना वेश परिवर्तन करने बैठे।
चिकने बालों को पीठ पर फहराए हुए, उस पर खैर का टीका-फटीका लगाकर नवीन लता-पुष्पों से सर ढंककर शांति खासी-वैष्णवी बन गई। सारंगी उसने हाथ में ले ली। इस तरह का वह अंगरेज-शिविर पहुंच गई। काली मूंछोंवाले सिपाही उसे देखकर पागल हो उठे। चारों तरफ से लोगों ने उसे घेरकर गवाना शुरू किया। कोई ख्याल गवाता, तो कोई टप्पा, कोई गजल। किसी ने दाल दिया, किसी ने चावल, तो किसी ने मिठाई। किसी ने पैसे दिए, तो किसी ने चवन्नी ही दे दी। इसी तरह वैष्णवी अपनी आंखें से शिविर का हाल-चाल देखती घूमने लगी।
सिपाहियों ने पूछ-अब कब आओगी?
वैष्णवी ने कहा-कैसे बताऊं, मेरा घर बड़ी दूर है।
सिपाहियों ने पूछा-कितनी दूर?
वैष्णवी ने कहा-मेरा घर पदचिन्ह में है।
शांति उठकर खड़ी हो गई! जो आए थे, उन्होंने कहा-रोओ नहीं, बेटी! जीवानंद शांति ने पहचाना-वह जीवानंद की देह थी। सर्वाग क्षत-विक्षत, रुधिर से सने हुए थे। शांति यह कहकर वे महापुरूष शांति को रणक्षेत्र के मध्य में ले गए। वहीं शवों का एक स्तूृप लगा हुआ था। शांति उसे हटा न सकी थी। उस महापुरुष ने स्वयं शवों को हटाकर एक शव बाहर निकाला। शांति ने पहचाना- वह जीवानंद की देह थी। सर्वाग क्षत-विक्षत रुधिर से सने हुए थे। शांति सामान्य स्त्री की तरह जोरों से रो पड़ी।
महापुरुष ने फिर कहा-रोओं नहीं बेटी! क्या जीवानंद मर गए हैं? शांत होकर उनका शरीर देखो, नाड़ी की परीक्षा करो!
शांति ने शव की नाड़ी देखी, नाड़ी का पता न था। वे बोले-छाती पर हाथ रखकर देखो।
शांति ने छाती पर हाथ रखकर देखा, गतिहीन ठंढा था!
फिर महापुरुष ने कहा-नाक पर हाथ रखकर देखो, कुछ भी श्वास नहीं है?
शांति ने देखा, किंतु हताश हो गई।
महापुरुष ने फिर कहा-मुंह में उंगली डालकर देखो, कुछ गरमी मालूम पड़ती है?
आशामुग्धा शांति ने वह भी किया, बोली-मुझे कुछ पता नहीं लगता है।
महापुरुष ने बायां हाथ शव पर रखकर कहा-बेटी, तुम घबरा गई हो। देखो अभी देह में हलकी गरमी है!
अब शांति ने फिर नाड़ी देखी- देखा कि मन्द, अतिमन्द गति है। विस्मित होकर उसने छाती पर हाथ रखा- मृदुधड़कन है। नाक पर हाथ रखकर देखा- हल्की सांस है। शांति ने विस्मित होकर पूछा-क्या प्राण था? या फिर से आ गया है?
उन्होंने कहा-भला ऐसा कभी हुआ है, बेटी! तुम इन्हें उठाकर तालाब के किनारे तक ले चल सकोगी? मैं चिकित्सक हूं, इनकी चिकित्सा करूंगा।
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