Re: ~!!आनन्दमठ!!~
शांति जीवानंद को तालाब पर ले जाकर घाव धोने लगी। इसी समय उन महापुरुष ने लता आदि का प्रलेप लाकर घावों पर लगा दिया। इसके बाद वे जीवानंद का शरीर सहलाने लगे। अब जीवानंद के श्वास-प्रश्वास तेज हो गए। कुछ ही क्षण में उठ बैठे। शांति के मुंह की तरफ देखकर उन्होंने पूछा-युद्ध में किसकी विजय हुई?
शांति ने कहा-तुम्हारी विजय! इन महात्मा को प्रणाम करो?
अब दोनों ने देखा कि वहां कोई नहीं है, किसे प्रणाम करें!
समीप ही संतान-सेना का विजयोल्लास सुनाई पड़ रहा था। लेकिन शांति या जीवानंद में से कोई भी न उठा। दोनों विमल ज्योस्तना में पुष्करिणी-तट पर बैठे रहे। जीवानंद का शरीर अद्भुत औषध बल से जल्द ही ठीक हो गया। जीवानंद ने कहा-शांति! चिकित्सक की दवा में गुण है। अब मेरे शरीर में जरा भी ग्लानि या कष्ट नहीं है। बोलो, अब कहां चलें संतान सेना का जयोल्लास सुनाई पड़ रहा है!
शांति बोली-अब वहां नहीं। माता का कार्योद्धार हो गया है। अब यह देश संतानों का है। अब वहां क्या करने चलें?
जीवानंद-जो राज्य छीना है उसकी बाहुबल से रक्षा तो करनी होगी।
शांति-रक्षा के लिए महेंद्र है। तुमने प्रायश्चित कर संतान-धर्म के लिए प्राण-त्याग दिया था। अब पुन: प्राप्त इस जीवन पर संतानों का अधिकार नहीं है। हमलोग संतानों के लिए मर चुके हैं। अब हमें देखकर संतान लोग कह सकते हैं कि प्रायश्चित के भय से ये लोग छिप गए थे, अब विजय होने पर प्रकट हो गए हैं- राज्य-भाग लेने आए हैं।
जीवानंद-यह क्या शांति? लोगों के अपवाद-भय से अपना क*र्त्तव्य छोड़ दें। मेरा कार्य मातृसेवा है। दूसरा चाहे जो कहे, मैं मातृ-सेवा करूंगा।
शांति-अब तुम्हें इसका अधिकार नहीं है, क्यों कि तुमने मातृ-सेवा के लिए अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया। अब-यदि सेवा करोगे, तो तुमने उत्सर्ग क्या किया? मातृ-सेवा से वंचित होना ही प्रधान प्रायश्चित है। अन्यथा जीवन त्याग देना क्या कोई बड़ा काम है?
जीवानंद-शांति! तुमने ठीक समझा। लेकिन मैं अपने प्रायश्चित को अधूरा न रखूंगा। मेरा सुख संतान-धर्म में है, लेकिन कहां जाऊंगा? मातृ-सेवा त्यागकर घर जाने में क्या सुख मिलेगा?
शांति-यह तो मैं कहती नहीं हूं। हम लोग अब गृहस्थ नहीं है, हम दोनों ही संन्यासी रहेंगे- फिर ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे। चलो हम लोग देश-पर्यटन कर देव-दर्शन करें।
जीवानंद-इसके बाद?
शांति-इसके बाद हिमालय पर कुटी का निर्माण कर हम दोनों ही देवाराधना करेंगे- जिससे माता का मंगल हो, यही वर मांगेंगे।
इसके बाद दोनों ही उठकर हाथ में हाथ दे, ज्योत्सनामयी रात्रि में अन्तर्हित हो गए।
हाय मां! क्या फिर जीवानंद सदृश पुत्र और शांति जैसी कन्या तुम्हारे गर्भ में आएंगे?
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