Re: ~!!आनन्दमठ!!~
एक सिपाही ने सुना था कि मेजर साहब पदचिन्ह की खबर लिया करते हैं, तुरंत वह वैष्णवी को मेजर साहब के शिविर में ले गया। मेजर साहब को देखकर वैष्णवी ने मधुर कटाक्ष का बाण छोड़ा। मेजर साहब का तो सर चक्कर खा गया। वैष्णवी तुरंत खंजड़ी बजाकर गाने लगी-
मलेच्छ निवहनितमे कलयसि करवालम्
साहब ने पूछा-ओ बीबी! टोमारा घड़ कहां?
बीबी बोली-मैं बीबी नहीं हूं, वैष्णवी हूं। मेरा घर पदचिन्ह में है।
साहब -ह्वेयर इज दैट एडसिन पेडसिन? होआं ऐ ठो घर हाय?
बैष्णवी बोली-घर? है।
साहब-घर नई-गर-गर-नई-गड़-
शांति-साहब! मैं समझ गई, गढ़ कहते हो?
साहब-येस-येस, गर-गर..हाय?
शांति-गढ़ है-भारी किला है।
साहब-केहा आडमी?
शांति-गढ़ में कितने लोग रहते हैं? करीब बीस-पचीस हजार।
साहब-नान्सेंस- एक ठो केल्ला में दो-चार हजर हने सकटा। अबी हुई पर हाय कि सब चला गिया?
शांति-वे सब मेले में चले जाएंगे!
साहब-मेला में टोम कब आया होआं से?
शांति-कल आए हैं साहब!
साहब-ओ लोग आज निकेल गिया होगा?
शांति मन-ही-मन सोच रही थी कि-तुम्हारे बाप के श्राद्ध के लिए यदि मैंने भात न चढ़ाया, तो मेरी रसिकता व्यर्थ है। कितने स्यार तेरा मुंड खाएंगे, मैं देखूंगी। प्रकट रूप में बोली-साहब! ऐसा हो सकता है, ऐसा हो सकता है। आज चला गया हो सकता है। इतनी खबर मैं नहीं जानती। बैष्णवी हूं, मांगकर खाती हूं-गाना गाती हूं, तब आधा पेट भोजन पाती हूं। इतनी खबर मैं क्या जानूं? बकते-बकते गला सूख गया- पैसा दो, मैं जाऊं। और अच्छी तरह बख्शीश दो, तो परसों खबर दूं।
साहब ने झन से एक रुपया फेंकते हुए कहा-परसों नहीं, बीबी!
शांति बोली-दुर बेटा, बैष्णवी कहो, बीबी क्या?
साहब-परसू नहीं, आज रात को खबर मिलने चाही।
शांति-बंदूक माथे के पास रखकर नाक में कड़वा तेल छुड़वाकर सोओ। आज ही मैं दस कोस रहा तय कर जाऊं और आज ही फिर लौट आऊं- और तुम्हें खबर दूं? घासलेटी कहीं के!
साहब-घासलेटी किसको बोलता?
शांति-जो भारी वीर, जेनरल होता है।
साहब-ग्रेट जेनरल हाम होने सकता। हाम-क्लाइव का माफिक। लेकिन आज ही हमको खबर मेलना चाही। सौ रूपी बख्शीश देगा।
शांति-सौ दो, हजार दो, बीस हजार दो-पर आज रात भर में मैं इतना नहीं चल सकतीं।
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