Re: munshi premchand
सबसे पहले कुकी जी को इस सुंदर प्रस्तुति हेतु धन्यवाद. यह कहानी कम से कम 70 वर्ष पुरानी अवश्य होगी. हमारे समाज की सोच और स्थिति जो उस समय थी, कामोबेश वही आज तक बरकरार है. हमारी विडम्बना यही है कि सांप्रदायिक मामलों में हमारी कथनी और करनी अलग अलग होती है. इसके लिए हमारे देश के कर्णधारों से ले कर सामान्य व्यक्ति तक एक से दोषी हैं.
अमर कथाकार प्रेमचंद को शत-शत नमन.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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