Re: मुझे मत मारो :.........
पुष्पा सोनी जी और डॉ श्री विजय दोनों ने ही यहाँ अपने अपने सारगर्भित विचार हम सब से साझा किये जिससे हमें उन दोनों के दृष्टिकोण को जानने का अवसर प्राप्त हुआ. हमारे समाज में जहाँ अच्छाइयाँ दिखाई देती हैं, वहां बुराईयां भी कम नहीं हैं. आधुनिक स्त्री ने सृजनात्मक, व्यावसायिक, कार्मिक, आर्थिक या राजनैतिक क्षेत्र में आज जो मुकाम हासिल किया है वह अपने बूते पर हासिल किया है, इसे स्वीकार किया जाना चाहिए. सैंकड़ों साल तक हमारे ढकोसलाग्रस्त तथा पुरुष प्रधान समाज ने अनुसूचित जाति के लोगों और महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक समझा और कहा:
ढोल गँवार सूद्र पसु नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी
अगर आज इनकी स्थिति में कुछ बदलाव दिखाई देता है तो इसका श्रेय इन तबकों के निरंतर संघर्ष तथा हार न मानने की इनकी दृढ़ इच्छा शक्ति को दिया जाना चाहिए. इन दोनों तबकों के प्रति हमारे समाज की सोच के उदाहरण आपको इतिहास की किताबों में नहीं बल्कि दैनिक समाचार पत्रों की सुर्ख़ियों में मिल जायेंगे. हमारा कर्तव्य है की हम इस बदलाव को नम्रता पूर्वक स्वीकार करें. बहुत बहुत धन्यवाद.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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