Re: हम आज में क्यों नहीं जीते?
हम आज में क्यों नहीं जीते?
तुमने उन दो अजनबियों की कहानी तो सुनी होगी जिनकी भेंट रेलगाड़ी में होती है। एक यात्री ने पास बैठे व्यक्ति से समय पूछा। उसे समय बताने की बजाय, इस व्यक्ति ने उसे कोसना और गालियाँ देना शुरू कर दिया। उस व्यक्ति को बार-बार गालियाँ खाते हुए देख कर, आख़िरकार डिब्बे में सवार एक अन्य व्यक्ति से रहा न गया और वह बोला, “ऐ! तुम क्यों उस बेचारे पर इस तरह बरस रहे हो? उसने तुमसे समय ही तो पूछा है।”
उस व्यक्ति ने अपने गाली-गलौज को तनिक विराम देते हुए कहा, “हाँ, अभी तो इन्होंने समय ही पूछा है। मान लो मैं समय बता देता हूँ, उसके बाद ये मुझसे मौसम पर चर्चा करने लगेंगे। फिर वर्तमान घटनाओं पर चर्चा होगी, फिर मेरे पसन्द/नापसंद के बारे में। फिर ये मुझे अपनी काम-काजी संभावनाओं से अवगत करायेंगे। और फिर मैं इन्हें पसन्द करने लगूंगा, अपने घर आमन्त्रित करूंगा। मेरी एक बहुत सुन्दर बेटी है जो मेरी सारी संपत्ति की मालिक है। इनकी मीठी, लच्छेदार बातों में आ कर वो आकर्षित हो जाएगी। तब ये मुझसे उसका हाथ मांगेंगे। फिर मैं अपनी बेटी की शादी इस आदमी से करने के लिए बाध्य हो जाऊँगा जिसके पास एक घड़ी खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं!” एक सांस में वो यह सब कह गया!
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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