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Originally Posted by jalwa
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निशांत भाई, मैं आपके विचारों की कद्र करता हूँ .. तथा आपके सभी कथनों का समर्थन करता हूँ .. लेकिन यह कहना की 'रामायण' और 'महाभारत' केवल लेखकों की रचनाएं हैं'. .... मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ.
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नीरज जी, बात पर गौर करें
मैंने चतुर लेखकों की बेहतरीन रचना कहा है ना की "मिथ्या कल्पना"
मैं एक बात और स्पष्ट कर दूँ की मैं नास्तिक नहीं हूँ, हिन्दू धर्म में मेरी अटूट आस्था है
हाँ अन्धविश्वास नहीं करता, तथ्यों पर आधारित बातें ज्यादा पसंद है वनिस्पत किस्से कहानियों के
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Originally Posted by aksh
जैसे कि सूत्रधार ने बताया है कि ईसाई धर्म में सिर्फ एक गोड, एक बाइबल, एक क्राइस्ट होता है पर विभाजन तो वहां पर भी है और जितना भी मैंने पढ़ा है कि उनके चर्च भी अलग होते हैं और रोम के बिशप को सभी चर्च अपना लीडर नहीं मानते. कुछ मुख्य ग्रुप बनने के बाद ईसाईयों में भी बहुत से सब ग्रुप हैं जो मुख्यतः पूजा विधि और विश्वास में भिन्नता की वजह से बने हैं. इसलिए उनके अन्दर भी बहुत से सिद्धांतों और संतो को माना जाता है और उनको सम्मान और आदर की दृष्टि से देखा जाता है. और अगर देखा जाए तो ये सभी देवता ही हुए.
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इस सन्दर्भ में सूत्रधार के जवाब का इन्तजार करूँगा