Re: छलने लगे हैं लोग
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Originally Posted by आकाश महेशपुरी
छलने लगे हैं लोग
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देकर यकीन साथ का छलने लगे हैं लोग
लालच की गोद में यहाँ पलने लगे हैं लोग
कहने को आदमी हैं मगर स्वार्थ के लिए
गिरगिट की तरह रंग बदलने लगे हैं लोग
मुक्तक- आकाश महेशपुरी
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बहुत सुन्दर. आज क हालात पर सटीक बैठता है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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