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Originally Posted by Dark Saint Alaick
आंकड़ों का खेल
इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने लोकसभा में एम. आनंदन और सुरेश अंगाड़ी के प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि विश्व इस्पात संघ के आंकड़ों के मुताबिक भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश है। विश्व इस्पात संघ द्वारा जारी वैश्विक आंकड़ों के अनुसार भारत 2010, 2011 और 2012 में सितंबर तक दुनिया का चौथा बड़ा इस्पात निर्माता देश है। जनवरी से सितंबर, 2012 के बीच चीन सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश रहा है। इस मामले में उसके बाद जापान और अमेरिका का स्थान है।
अभी तक की सूचना पढ़ कर आप खुशी से झूम सकते हैं, लेकिन आंकड़ों का यह खेल देख कर आप हैरान रह जाएंगे कि अपनी नाकामियां छुपाने के लिए कोई इनका किस तरह अपने पक्ष में इस्तेमाल कर सकता है। इस मुद्दे पर आगे बढूं, इससे पहले सोवियत संघ के समय का एक प्रचलित मज़ाक आपसे शेयर करना चाहूंगा। मॉस्को निवासी मेरे एक मित्र हर बार नए साल के आसपास स्वदेश आते हैं। पति-पत्नी दोनों वहीं कार्यरत हैं। उनका पैतृक मकान मेरे अपार्टमेन्ट से कुछ ब्लॉक ही दूर है, लेकिन संबंधों की नजदीकियों की वज़ह यह नहीं है, बल्कि यह है कि कभी जयपुर में मार्क्सवादी साहित्य का केंद्र रहे 'किताबघर' (यह अब बंद हो चुका है) में हमारी लम्बी बैठकें होती थीं और अक्सर मैं बहस में उन्हें हरा देता था। किन्तु अब स्थिति उलट है, इसलिए कि अब जब भी वे आते हैं, तो मेरे लिए दो बोतलें लाते हैं - एक तो स्कॉच और दूसरी रूस की शुद्ध वोदका। ज़ाहिर है, अब मैं कभी-कभी उनसे जान-बूझ कर हार जाता हूं। खैर, यह तो मैं भटक गया। मुद्दे पर आते हैं। बात चल रही थी आंकड़ों के खेल और मज़ाक की। उन्होंने मजाक जो बताया, वह यह था कि सोवियत सत्ता उस समय अपने श्रेष्ठ कार्य का बखान करने में इस कदर आत्म मुग्ध थी कि एक गांव में साक्षरता की लक्ष्य प्राप्ति शत-प्रतिशत बता दी गई, बाद में पोल खुली, तो पता चला कि उस गांव में पहले सिर्फ एक व्यक्ति साक्षर था और स्थानीय कोम्सोमोल ने एक और व्यक्ति को साक्षर बना कर उपलब्धि को दोगुना यानी शत-प्रतिशत मान कर केन्द्रीय कमेटी को भेज दिया।
अब आते हैं अपनी सरकार पर। अगर मैं आपको बताऊं कि 2009-10 में भारत का इस्पात निर्यात 6029.82 मिलियन अमेरिकन डॉलर था, 2010-11 में 4714.53, 2011-12 में 4399.28 और 2012-13 में अब तक (यानी सितम्बर तक) सिर्फ 1103.84 मिलियन अमेरिकन डॉलर हुआ है अर्थात इसके बहुत ज्यादा बढ़ने की संभावना नहीं है और अब निर्यात में जो एक नंबर के शीर्ष पर विराजमान है, उसका निर्यात अब तक 5167.89 मिलियन अमेरिकन डॉलर हुआ है यानी आपके 2009-10 के आंकड़े से वह अभी पीछे है, किन्तु नंबर वन है। ... और आप चौथे स्थान पर खिसकने का जश्न मना रहे हैं। केंद्र सरकार यह अपनी उपलब्धि गिना रही है या नाकामी को छुपा रही है? आपको कैसा लगा आंकड़ों का यह खेल? क्या ख्याल है आपका ?
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पहली बात तो मैं यह कहना चाहूँगा की क्या बड़ा निर्माता देश इसको कितने मिलियन डॉलर के निर्यात हुआ उससे मापा जाना चाहिए या कितने टन स्टील का निर्यात हुआ। मान लिए दो मिठाई की दुकाने हैं एक में हर दिन 10,000 की मिठाई बिकती है तो दुसरे में हर दिन 8000 की मिठाई बिकती है। लेकिन इससे हम यह तो पता नहीं कर सकते है किसने कितने किलो बेचे। इस डाटा के हिसाब से लोग बोलेंगे की पहली वाली दूकान मिठाई की बड़ी एक्सपोर्टर लेकिन हो सकता है की पहली दूकान में मिठाई महंगी बिकती हो और दूसरी दूकान ने ज्यादा किलो मिठाई बेचीं हो लेकिन कम दाम में।
तो इस इस्पात वाले डाटा में भी यही लग रहा है मुझे। कौन सबसे बड़ा निर्यातक है इसका फैसला इससे होने चाहिए की किसने कितने टन इस्पात निर्यात किया।
जहाँ तक रूपये के निरंतर अवमूल्यन का सवाल है इससे हमेशा एक्सपोर्ट में फायदा होता है और इम्पोर्ट यानी आयात में नूक्सान। चूँकि सरकार सारा डाटा डॉलर में दे रही है इसलिए रूपये के अवमूल्यन को उसमे consider नहीं किया गया है।
फिर भी सरकार का यह सब डाटा डॉलर के हिसाब से देना यह जाहिर करता है दाल में कुछ काला है। वैसे जाते जाते अपने बेनी प्रसाद वर्मा तो इतने योग्य नहीं है की यह सब हेरफेर कर सके जाहिर यह सब कारगुजारी मिनिस्ट्री ऑफ़ स्टील के अधिकारियों की होगी।