Re: मुहम्मद रफी : बहू की नजरों में
धन्य है वह अनाम फकीर, जिसकी प्रेरणा पाकर हिंदुस्तान ही नहीं, बल्कि समूची कायनात को मुहम्मद रफी के रूप में एक अदद फनकार मिला। साम्प्रदायिकता की आग में झुलसने वाले धर्म-मजहबों से कोसों परे रफी ने भजनों से लेकर कव्वालियों तक कुल 4518 गीतों के जरिए सच्चे संगीतप्रेमियों को सुखद-निश्छल अनुभूति का अहसास कराया। पहले गीत ‘अजी दिल हो बेकाबू...’ से लेकर अंतिम गीत ‘तेरे आने की आस है दोस्त...’ तक संगीतरसिकों को खुशी, ग़म, आंसू, तड़प और विरह सहित अनेक राग-रंगों का अहसास कराने वाले रफी को आज हमसे बिछड़े हुए करीब 32 साल हो गए हैं। बावजूद इसके, आज भी लोग उनके गीतों को शिद्दत से गुनगुनाते हैं। हर दौर में लोगों ने रफी को अपनी-अपनी तरह से याद किया है, पर इस बार उन्हें याद कर रही हैं उनकी बहू यासमीन खालिद रफी। डॉली के नाम से चर्चित यास्मीन ने अपने अब्बा (रफी) की यादों को एक किताब की शक्ल में साझा किया है। हिन्दुस्तान के इस बेनजीर गायक के जन्मदिन पर मैं पेश कर रहा हूं अब्बा को समर्पित यास्मीन लिखित पुस्तक ‘मुहम्मद रफी : हमारे अब्बा-कुछ यादें’ के कुछ अंश।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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