Re: जीवन में भाग्य और पुरूषार्थ.दोनों का ही अप
ये सभी बातें उसे जिस कर्म को करने को उद्युत (विवश) करती हैं, वही उसे अपना कर्म समझकर करनी पडती हैं और वह उन्हे करता है । क्यों कि इस समय उसे व्यक्तिश: स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं होती और वही उन कर्मों की अनिवार्यता है । इन्सान का प्रारब्ध (भाग्य) गर्भ में आने से लेकर अन्तिम समय तक घडी की सूँई की भान्ती सदैव उसके साथ चलता है । वैदिक ज्योतिष अनुसार व्यक्ति के प्रारब्ध के बारे में उसकी जन्मकुंडली के नवम भाव (nineth house) तथा नवमेश की स्थिति से पता चलता है..............
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