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Old 12-11-2012, 07:52 AM   #30
abhisays
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Default Re: तीन सौ रामायणें :: ए.के. रामानुजन

यह हिस्सा कम्बन में ही है; वाल्मीकि के यहां यह नहीं मिलता। यहां बताया गया है कि पानी किस तरह समुद्र से बादलों के द्वारा संकलित किया जाता है और बारिश के रूप में नीचे आता है और सरयू नदी की बाढ़ के रूप में रामराज्य की राजधानी, अयोध्या की ओर प्रवाहित होता है। इसके माध्यम से कम्बन अपने सारे प्रतिपाद्यों और बलाघातों की, यहां तक कि अपने चरित्रों, उर्वरता की थीम के प्रति अपने सरोकार (जो कि वाल्मीकि में प्रच्छन्न है), राम के पुरखों के पूरे वंश, और रामायण के माध्यम से प्रकट होने वाले भक्ति के अपने दर्शन, की प्रस्तावना कर देते हैं।

उपमाओं और संकेतों के ज़रिये विषयवस्तुओं की जिस विविधता को सामने लाया गया है, उस पर ग़ौर करें। यहां पानी से जुड़ी हर बात स्वयं रामायण की कथा के किसी पहलू का प्रतीक है और रामायण की सृष्टि के किसी अंश का प्रतिनिधित्व करती है (मिसाल के लिए, वानर)। आगे बढ़ते हुए यह जल-प्रवाह / जल-प्रवाह का वर्णन, उन ख़ास-ख़ास तमिल परंपराओं को उभारता चलता है जो कहीं और नहीं पायी जाती हैं, जैसे क्लासिकी तमिल काव्य के पांच भूदृश्य। खुद पानी, जो कि जीवन और उर्वरता का स्रोत है, पर ज़ोर तमिल साहित्यिक परंपरा का एक सुनिश्चित अंग है।

रामायणों के बीच अंतर का एक दूसरा बिंदु है, किसी महत्वपूर्ण चरित्र पर फ़ोकस करने की सघनता का अंतर। वाल्मीकि अपने आरंभिक हिस्सों में राम और उनके इतिहास पर केंद्रित हैं; विमलसूरि की जैन रामायण और थाई भाषा का महाकाव्य राम पर नहीं बल्कि रावण की वंशावलि और उसके कारनामों पर एकाग्र होते हैं; कन्नड़ के ग्रामीण वाचन सीता पर, उनके जन्म, उनके विवाह, उनकी परीक्षाओं पर एकाग्र होते हैं। अद्भुत रामायण और तमिल शतकंठवन जैसी कुछ बाद की कृतियां सीता को एक नायकोचित चरित्र तक बना देती हैं : जब दस सिर वाला रावण मार दिया जाता है तो एक दूसरा सौ सिर वाला रावण प्रकट होता है; राम इस नयी मुसीबत का सामना नहीं कर सकते, इसलिए सीता ही युद्ध करने जाती हैं और इस नये दानव का वध करती हैं।20 अपनी सुविस्तृत मौखिक परंपरा के लिए सुविदित संथाल लोग तो सीता को व्यभिचारिणी के रूप में प्रस्तुत करते हैं - वाल्मीकि और कम्बन को पढ़ने वाले किसी भी हिंदू के लिए यह सदमे और ख़ौफ़ का विषय होगा कि यहां सीता का शीलभंग रावण और लक्ष्मण दोनों के द्वारा किया जाता है। दक्षिणपूर्व एशिया के पाठों में, जैसा कि हमने पहले देखा है, हनुमान वानर मुख वाले एक ब्रह्मचारी भक्त नहीं बल्कि एक ‘लेडीज' मैन’ हैं जो अनेक प्रेमप्रसंगों में दिखते हैं। कम्बन और तुलसी के यहां राम ईश्वर हैं; जैन पाठों में वे मात्र एक उन्नत जैन पुरुष हैं जो अपने आख़िरी जन्म में है और इसीलिए रावण का वध भी नहीं करता। यहां रावण एक कुलीन नायक हैं जिन्हें अपने कर्म के चलते सीता के प्यार में पड़ना और अपनी मौत बुलाना बदा है, जबकि दूसरे पाठों में वे एक उद्धत राक्षस हैं। इस तरह हर महत्वपूर्ण चरित्र की संकल्पना में आमूल अंतर हैं, ऐसे अंतर कि कोई एक संकल्पना उन लोगों के लिए जुगुप्साजनक हो सकती है जो किसी दूसरी संकल्पना को धारण करते हैं। हम इसमें और भी बहुत कुछ जोड़ सकते हैं : सीता के निर्वासन के कारणों की व्याख्या, सीता के दूसरे पुत्र की चमत्कारिक सृष्टि, और राम और सीता का अंतिम पुनर्मिलन। इनमें से प्रत्येक एकाधिक प्रदेशों में, एकाधिक पाठीय समुदायों (हिंदू, जैन या बौद्ध) में, एकाधिक पाठों में आता है।
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