Re: मनोरंजक लोककथायें
“जी हाँ, महाराज!"
"और ये वो ब्राह्मण है –“
“जी हाँ, महाराज!"
“और वह रहा पिजरा – “
“ जी हाँ, महाराज!”
“ और मैं पिंजरे के अन्दर था – बात समझ में आयी?"
“हां s- न- नहीं- मुझे क्षमा करें, महाराज -“
“तो फिर -- ?” बाघ अधीर होते हुये गुर्राया.
“कृपया, महाराज! आप पिंजरे के अन्दर कैसे गये?”
“कैसे?? जैसे आम तौर पर होता है!! और कैसे??”
“ओह, मैं क्या करूँ. मेरा तो सर चकरा रहा है. आप रुष्ट न हों, महाराज, मगर आम तौर पर यह कैसे होता है?”
इस पर बाघ का संयम जाता रहा और सियार को समझाने के लिये वह पिंजरे में घुस कर चिल्लाया,
“इस तरह !! ...... आशा है अब तुम्हें सारी बात समझ में आ गई होगी?”
“बिलकुल!!” सियार ने हँसते हुये कहा. उसने बड़ी सफाई से पिजरे का द्वार बंद करते हुये कहा, “अगर आप बुरा न मानें तो मैं ये कहना चाहूँगा कि अब सारा मामला समझ में आ गया है.”
ब्राह्मण ने सियार का आभार प्रगट किया और अपने रास्ते पर अग्रसर हो गया.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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