Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
Some for the Glories of This World; and some
Sigh for the Prophet's Paradise to come;
Ah, take the Cash, and let the Credit go,
Nor heed the rumble of a distant Drum!
शौक जन्नत का न कुछ शेफ्तगी-ए-हूर भली.
मैं ये कहता हूँ कि बस दुख्तर-ए-अंगूर भली.
नक़द को छोड़ के किस वास्ते सौदा हो उधार,
कहते हैं ढोल की आवाज़ तो बस दूर भली.
(प्रो. वाकिफ़)
शेफ्तगी-ए-हूर = परियों का मोह / दुख्तर-ए-अंगूर = अंगूर की बेटी अर्थात् शराब
कुछ तो इस दुनिया में जीने का तसव्वुर पालते हैं.
और कुछ परलोक, हूर-ओ-अंगूर में ग़ म ढालते हैं.
बात वो जो आज, अब की, नक़द की, आनन्द की,
ये ढोल दूर के लगें सुहाने कल के सारे मुग़ालते है.
(रजनीश मंगा)
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