Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
दूर का छोड़ प्रलोभन मोह,
करो जो पास उसी का मोल,
सुहाने बस लगते है प्राण,
अरे ये दूर - दूर के ढोल!
जगत की आशाये जाज्वल्य,
लगाता मानव जिन पर आँख,
न जाने सब की सब किस ओर,
हाय! उड़ जाती बन कर राख.
(रूपांतर / डॉ. हरिवंश राय बच्चन)
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