Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
गड़े दोनों ही एक समान,
हुए मिट्टी के दोनों हाड़,
न कोई हो पाया वह स्वर्ण,
जिसे देंगे फिर लोग उखाड़.
यहाँ आ बड़े बड़े सुलतान,
बड़ी थी जिनकी शौकत शान,
न जाने कर किस ओर प्रयाण,
गए बस दो दिन रह मेहमान.
(रूपांतर/डॉ. हरिवंश राय बच्चन)
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