Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
और अब जो कुछ भी है शेष,
भोग वह सकते हम स्वच्छंद,
राख में मिल जाने के पूर्व,
न क्यों कर लें जी भर आनंद.
गड़ेंगे हो कर हम जब राख,
राख में तब फिर कहाँ बसंत,
कहाँ स्वरकार, सुरा, संगीत,
कहाँ इस सूनेपन का अंत.
(रूपांतर/डॉ. हरिवंश राय बच्चन)
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