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Old 01-12-2012, 08:19 AM   #15
ravi sharma
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Default Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन

आगे फिर एक मच्छ मिला उसने भी उसे मुख में डाल लिया पर उससे भी वह निकल गया | फिर आगे पिशाचिनी का देश था वहाँ राजा को पिशाच ने काम से मोहित किया | फिर उसने दक्षप्रजापति की कुछ अवज्ञा की जिससे उसने शाप दिया और राजा वृक्ष हो गया | निदान कुछ काल वृक्ष रहकर फिर छूटा तो एक देश में दर्दुर हुआ और सौ वर्षपर्यन्त खाईं में पड़ा रहा | फिर उससे छूटकर मनुष्य हुआ तब किसी सिद्ध के शाप से शिला हो गया और सौ वर्षपर्यन्त शिला ही रहा | उसके उपरान्त अग्निदेवता ने शिला से छुड़ाया तो फिर मनुष्य हुआ, तब वह सिद्ध आश्चर्यवान् हुआ कि मेरे शाप को दूर करके यह मनुष्य क्यों कर हुआ है- यह तो मुझसे भी बड़ा सिद्ध है | ऐसे जानकर उसने उसके साथ मैत्री की | इसी प्रकार दूसरे समुद्रों को भी यह लाँघता गया और क्षीरसमुद्र, खारी समुद्र और इक्षु के रस के समुद्र को लाँघकर द्वीपों को लाँघता गया |
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
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