Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
मेरे घर के आगे एक तलाब था जहां बरगद का एक पुराना पेड़ भी था तथा वहीं गांव के लोग भीषण गर्मी से बचने के लिए दोपहर मे आराम करते थे और मैं भी सुबह शाम दोपहर वहीं खेला करता था। रीना छत पर होती तो मन में एक अजीब सी लहर उठती उसे रिझाने का। कुछ कुछ सिनेमाई। बरगद के पेंड़ पर चढ़ना, कूदना। बरगद के पेड़ की सोरी को पकड़ हाथ के सहारे बीस फिट की उंचाई चढ़ना और झुलना यह सब करते थे। कक्षा आठ से प्रारंभ यह कहानी इंटर की पढ़ाई तक चलती रही । नहीं नहीं मैट्रिक में इसमें कुछ परिवर्तन आया और मैंने पतली थीन पेपर पर कई बार लिख कर फाड़ दिया गया एक प्रेम पत्र आखिरकार एक दिन रीना के साथ साथ स्कूल से आते वक्त रास्ते में गिरा दिया और पलट कर देखा भी नहीं क्या हुआ। कई दिनों तक घर से लाज से निकला नहीं। हमेशा डर लगा रहता की जाने क्या होगा। पर हुआ कुछ नहीं। महीनों बीत गए पर अब रीना के साथ खेलने और स्कूल जाने का सिलसिला थम गया। अब एक लाज सी मन में होने लगी। रीना का भाई घर बुलाता भी तब भी मैं नहीं जाता। वह स्कूल के निकलती तो मैं पीछे पीछे जाता।
कई माह बाद उस पत्र का जबाब मिला जो सकारात्कम था। उसके बाद प्रारंभ हुआ सिलसिला प्रेम पत्र लिखने का। कई दिनों तक अथक मेहनत होती। शब्दों को सजाया जाता। शेर लिखे जाते तब जाकर प्रेम पत्र तैयार होता और जदोजहद शुरू होता उसे रीना तक पहुंचाने की और इस डर के साथ कि कहीं किसी के हाथ नहीं लग जाय। खैर प्रेम पत्र लिखने का सिलसिला चार सालों तक चलता रहा है पर सामने आने पर कभी हम दोनों ने एक दूसरे से प्यार की बात नहीं की।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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