Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद
अनुपश्य यथा पूर्वे प्रतिपश्य तथापरे ।
सस्यमिव मर्त्य: पच्यते सस्यमिवाजायते पुन: ॥६॥
हे तात ! आपके पूर्वजों ने आचरण, जो भी किया,
वर्तमान को श्रेष्ठ लोगों ने अभी जैसे जिया।
करिये यथावत आचरण, ऋत, मरण धर्मा प्राण हैं,
अन्न सम प्राणों की वृति इव, जन्म जीर्ण विधान है॥ [6]
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