"ये कुत्ता तुम्हारा नहीं है। ईस गली में रहेनेवाला आवारा कुत्ता है। ईस गली से आते जाते लोगों की तरफ भोंकता है, दौडता है, काटता है; और आप सब मिल कर ईस कुत्ते की तरफदारी कर रहे हो? भगवान न करे..लेकिन कभी आप में से किसी फिमिली मेम्बर को ईसने काटा तो पता चलेगा।"
"कुत्ते को अच्छे-बुरे का क्या पता....वह तो जानवर है बेचारा!"
"लेकिन मेरी बच्ची तो ईन्सान है ना?"
"कुत्ता ईन्सान से भी ज्यादा वफादार होता है।" एक औरत ने अपना बेतुका तर्क रखा। "उसने आपकी बच्ची को काटा, आपने उसे मारा। हिसाब बराबर।"
"कुछ हिसाब बराबर नहीं हुआ। यहां से गुजरते हुए लोगों को देख वह कुत्ता भोंकता है या गुर्राता है। उनकी गाड़ी के पीछे दौडता है और कभी कभी गिरा भी देता है। आप सब को यह देख कर मज़ा आता है? अभी परसों ही एक बुढे को ईसी कुते ने गाड़ी से गीरा दिया था। उसे सर पर चोट लगी थी। जरा सोचो...वह मर भी सकता था!"
"मरा तो नहीं ना?" शर्मा जी बोले।
"दुं क्या खींच के?" वह आदमी गुर्राया। "क्या कोई मरेगा तब अक्ल आएगी तुमको?"
"तु मुझे देगा? जरा हाथ तो लगा...हाथ लगा कर दिखा जरा।" शर्माजी भड़के। "तु जानता है किससे बात कर र्हा है? मुझे खींच कर देगा? मुझे?"
"हां कुत्ते तुझे!" वह आदमी बोला।
"तु कुत्ता, तेरा बाप कुत्ता। तेरा पुरा खानदान कुत्ता।" चिल्लाते हुए शर्मा जी को दो लोग खींच कर ले गए।
"तुमको यह कुत्ता ईतना प्यारा है तो अपने घर में क्युं नहीं रखते? " भीड में कई लोग उस आदमी की ओर भी थे।
"हां, हां सही कहा। मार के भगा दो ईस कुत्ते को।"
"या कार्परेशनवालों को बुला कर सोंप दो"
"यह कुत्ता तो अब गया जान से।"