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Old 18-08-2013, 12:57 PM   #1
dipu
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Default देवरानी जेठानी की कहानी

देवरानी जेठानी की कहानी
- प. गौरीदत्*त शर्मा

( हिन्*दी का पहला उपन्*यास ‘देवरानी जेठानी की कहानी’ (1870) है अथवा ‘परीक्षागुरु’ (1882), इस पर विद्वानों में मतभेद है। जहॉं डॉ नगेन्*द्र और डॉ निर्मला जैन सरीखे विद्वानों ने लाला श्रीनिवासदास के ‘परीक्षागुरु’ को हिन्*दी का पहला मौलिक उपन्*यास माना है, वहीं डॉ गोपाल राय व डॉ पुष्*पपाल सिंह आदि ने पं गौरीदत्*त रचित ‘देवरानी जेठानी की कहानी’ को हिन्*दी का पहला उपन्*यास होने का गौरव प्रदान किया है।
हिन्*दी उपन्*यास कोश (1870 – 1980) के कोशकारों संतोष गोयल, उषा कस्*तूरिया और उमेश माथुर ने भी ‘देवरानी जेठानी की कहानी’ को हिन्*दी का पहला उपन्*यास मानते हुए अपने कोश की शुरुआत ‘देवरानी जेठानी की कहानी’ के प्रकाशन वर्ष सन् 1870 ई से ही की है।
हम हिन्*दी समय डॉट कॉम पर लाला श्रीनिवासदास लिखित ‘परीक्षागुरु’ भी शीघ्र ही प्रस्*तुत करेंगे, जिसका उल्*लेख आचार्य रामचन्*द्र शुक्*ल ने अपने महत्*वपूर्ण ग्रंथ ‘हिन्*दी साहित्*य का इतिहास’ में किया है। )

भूमिका

स्त्रियों को पढ़ने-पढ़ाने के लिए जितनी पुस्*तकें लिखी गयी हैं सब अपने-अपने ढंग और रीति से अच्*छी हैं, परन्*तु मैंने इस कहानी को नये रंग-ढंग से लिखा है। मुझको निश्*चय है कि दोनों, स्*त्री-पुरुष इसको पढ़कर अति प्रसन्*न होंगे और बहुत लाभ उठायेंगे।

जब मुझको यह निश्*चय हुआ कि स्*त्री, स्त्रियों की बोली, और पुरुष, पुरुषों की बोली पसन्*द करते हैं जो कोई स्*त्री पुरुषों की बोली, वा पुरुष स्त्रियों की बोली बोलता है उसको नाम धरते हैं। इस कारण मैंने पुस्*तक में स्त्रियों ही की बोल-चाल और वही शब्*द जहॉं जैसा आशय है, लिखे हैं और यह वह बोली है जो इस जिले के बनियों के कुटुम्*ब में स्*त्री-पुरुष वा लड़के-बाले बोलते-चालते हैं। संस्*कृत के बहुत शब्*द और पुस्*तकों- जैसे इसलिए नहीं लिखे कि न कोई चित से पढ़ता है, और न सुनता है।

इस पुस्*तक में यह भी दर्शा दिया है कि इस देश के बनिये जन्*म-मरण विवाहादि में क्*या-क्*या करते हैं, पढ़ी और बेपढ़ी स्त्रियों में क्*या-क्*या अन्*तर है, बालकों का पालन और पोषण किस प्रकार होता है, और किस प्रकार होना चाहिए, स्त्रियों का समय किस-किस काम में व्*यतीत होता है, और क्*यों कर होना उचित है। बेपढ़ी स्*त्री जब एक काम को करती है, उसमें क्*या-क्*या हानि होती है। पढ़ी हुई जब उसी काम को करती है उससे क्*या-क्*या लाभ होता है। स्त्रियों की वह बातें जो आजतक नहीं लिखी गयीं मैंने खोज कर सब लिख दी हैं और इस पुस्*तक में ठीक-ठीक वही लिखा है जैसा आजकल बनियों के घरों में हो रहा है। बाल बराबर भी अंतर नहीं है।

प्रकट हो कि यह रोचक और मनोहर कहानी श्रीयुत एम.केमसन साहिब, डैरेक्*टर आफ पब्लिक इन्*सट्रक्*शन बहादुर को ऐसी पसन्*द आयी, मन को भायी और चित्*त को लुभायी कि शुद्ध करके इसके छपने की आज्ञा दी और दो सौ पुस्*तक मोल लीं और श्रीमन्*महाराजाधिराज पश्चिम देशाधिकारी श्रीयुत लेफ्टिनेण्*ट गवर्नर बहादुर के यहॉं से चिट्ठी नम्*बर 2672 लिखी हुई 24 जून सन् 1870 के अनुसार, इस पुस्*तक के कर्त्*ता पंडित गौरीदत्*त को 100 रुपये इनाम मिले।।

दया उनकी मुझ पर अधिक वित्*त से

जो मेरी कहानी पढ़ें चित्*त से।

रही भूल मुझसे जो इसमें कहीं,

बना अपनी पुस्*तक में लेबें वहीं।

दया से, कृपा से, क्षमा रीति से,

छिपावें बुरों को भले, प्रीति से।।

- प. गौरीदत्*त शर्मा
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