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Old 18-08-2013, 12:58 PM   #2
dipu
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Default Re: देवरानी जेठानी की कहानी

मेरठ में सर्वसुख नाम का एक अग्रवाल बनिया था। मंडी में आड़त की दूकान थी। आसपास के गॉंवों से लोग सौदा लाते। इसकी दुकान पर बेच जाते। पैसा-रुपया तुलाई का इसके हाथ भी लग जाता। और कभी भाव चढ़ा देखता तो हजार का नाज-पात लेकर दूकान में डाल देता और फ़ायदा देख उसे बेच डालता। ब्*याज-बट्टे और गिर्वी-पाते की भी उसे बहुतेरी आमदनी थी। हाट-हवेली, धन-दौलत, दूध-पूत परमेश्*वर का दिया उसके सबकुछ था। और यह इसने अपने ही पुरुषार्थ से किया था।



मॉं-बाप तो पिछले हैजे में पॉंच वर्ष का छोड़कर मर गये थे। चाचा ने पाला था। थोड़े ही दिन हुए होंगे जब तो कूकडि़यॉं बेचा करे था। चना-चबेना करता। खॉंचा सिर पै लिये गलियों में फिरा करे था।



फिर इसने परचून की दुकान कर ली। मुंशी टिकत नारायण और हरसहाय काबली शहर के अमीरों की इसके यहॉं उचापत उठने लगी। इसमें परमेश्*वर ने ऐसी की सुनी कि आड़त की दूकान हो गई। जहॉं-तहॉं से माल आने लगा। बढ़ी इज्*जत बढ़ गई। लोग पचास हज़ार रुपये का भरम करने लगे। सच्*च है जिसे परमेश्*वर देता है छप्*पर फाड़ के ऐसे ही देता है।



बड़ा भला मानस था। अड़ौसी-पड़ौसी सब इससे राजी थे। पुन्*न-दान में बहुत तो नहीं परंतु छठे-छमाहे कुछ-न-कुछ करता रहे था। बड़ी अवस्*था में आप ही अपना बिवाह किया था। पहिले दो लड़कियॉं हुईं, बड़ी का नाम पार्वती छोटी का प्*यार का नाम सुखदेई रक्*खा। फिर ईश्*वर ने उपरातली दो लड़के दिये। बड़े का नाम दौलत राम छोटे का नाम छोटे-छोटे पुकारने लगे। इन सब बहिन भाइयों की कोई दो-दो तीन-तीन वर्ष की छुटाई-बड़ाई होगी। बड़ी लड़की दिल्*ली बिवाही गयी। छोटी लड़की की मंगनी बंशीधर कबाड़ी के यहॉं हापुड़ हुई।



एक दिन रात को अपने घर में कहने लगा कि सुखदेई की मॉं, लाला बुलाकी दास हमारी बिरादरी में जो मदर्से में नौकर है यों कहते थे कि अपने छोटे बेटे को तुम अंग्रेजी पढ़ाओ। इसमें तेरी क्*या सलाह है और दौलत राम को तो मै अपने कार में गेरूंगा।

उसने कहा अच्*छा तो है। सारे दिन गलियों में कूदता फिरे है। परसों किसी लौंडे के कुछ मार आया था। उसकी मॉं लड़ती हुई यहॉं आई। और मैं तुमसे कहना भूल गई। आज चौथा दिन है कि दिल्*ला पॉंडे हमारे पुरोहित की बहू मिसरानी आई थी और कहे थी कि सुखदेई को मेरे साथ नागरी पढ़ने भेज दिया करो और भी मुहल्*ले की पॉंच-सात लौंडियें उसके घर जाया करे हैं और वह सीना-पिरोना भी सिखलाया करे है। और वह बड़ी-बड़ी बात कहै थी कि जब सुखदेई पढ़ जायगी चिट्ठी-पत्री लिखनी आ जायगी। घर का हिसाब लिख लिया करेगी। और उसके घर कभी-कभी एक मेम आया करे है। लौंडियों को देख हरी हो जा है और उनका पढ़ना सुनकर किसी को छल्*ला और किसी को अंगूठी दे जा है।



सो छोटेलाल तो मदर्से में बिठाये गये। दौलत राम लाला के साथ दूकान जाने लगे। और सुखदेई मिसरानी से नागरी पढ़ने लगी।



एक दिन कोई चार घड़ी दिन होगा। छोटे लाल बाहर खेल रहा था। घर में भाग गया और कहने लगा कि मॉं लाला आवे हैं।



यह अपने मन में डर गई और कहने लगी कि आज दिन से क्*यों आये।

इतने में वह भी आन पहुँचे और खाट पर बैठ गये। इसने छोटे लाल को पंखा दिया और कहा लाला को हवा कर।
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