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Old 18-08-2013, 12:58 PM   #3
dipu
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Default Re: देवरानी जेठानी की कहानी

यह बोले सुखदेई की मॉं, ले बोल क्*या करें? जहॉं दौलत राम को टेवा गया था, तनी गॉंठ करने को नाई आया है। और झल्*लामल जो कल खुरजे से आये थे यों कहें थे कि लड़की का बाप डूँगर बिचारा गरीब बनियॉं है। सरा के नुक्*कड़ पर परचून की दूकान खोल रक्*खी है। पर लड़की की मॉं बड़ी लड़ाका है। तुम्*हारे समधी के पास ही हमारा घर है और छोटेलाल की पीठ ठोक कर कहने लगा कि भाई छोटे लाल हमारा नसीबेवर है। गुड़गॉंवें के तहसीलदार ने इसका टेवा मॉंगा है। अभी तो रास्*ते में लाला दीनदयाल, किरपी के ताऊ, गाड़ी में बैठे आवे थे। मुझे पुकार कर कहने लगे कि मैं मामाजी से मिलने गुड़गॉंवें गया था सो वह पूछें थे कि सर्बसुख आड़ती का छोटा बेटा क्*या किया करे हैं? मैंने कहा साहब, मदर्से में अंग्रेजी पढ़े है और होशियार है। सो उन्*होंने उसका टेवा मागा है। तुम मुझे दे देना मैं भेज दूँगा। लाला साहब, लड़की बड़ी सुघड़ है। वह अपनी लड़की को आप नागरी पढ़ाया करे हैं।



सुखदेई की मॉं बोली कि तुम दौलत राम की सगाई रख लो। आई हुई लक्ष्*मी घर से कोई नहीं फेरता। और रुपया-पैसा हाथ-पैरों का मैल है। आगे लौंडिया लौंडे का भाग है।

सो नाई तनी गॉंठ करके चला गया। और उसी साल में विवाह की चिट्ठी ले के आया। इन्*होंने कहला भेजा कि अब के वर्ष तो हमारी लड़की विवाह की ठहर गयी है। अगले वर्ष विवाह रख लेंगे।

छोटेलाल की पत्री गुड़गॉंवे मिल ही गयी थी। लाला दीनदयाल के मारफत वहॉं से कहलावत आई कि सर्वसुख जी से कहना कि मरती जीती दुनिया है। आगे मैं सरकारी नौकर हूँ। आज यहॉं, कल जाने कहॉं को बदली हो जाय। सो लड़की का विवाह हम इसी साल में करेंगे।

इन्*होंने यहॉं से कहला भेजा कि हमारी इज्*जत उनके हाथ है। अभी तो दो विवाहों से निपटे हैं और इस साल में न केवल सूझता भी नहीं है। अगले साल जैसा मुन्*शी जी कहेंगे वैसा करेंगे।

अगले साल बिवाह की तैयारी हो गई और बड़ी धूम-धाम से लाला जी बेटे का बिवाह कर लाये। दोनों तर्फ की वाह-वाह रही। जब बहु घर आयी बगड़-पड़ौसन सब इकट्ठी हो गयी और सुखदेई की मॉं से कहने लगीं ले बहिन, बहुडि़या तो भली-सुन्*दर है। तेरी बड़ी बहू का रंग तो सॉवला है।

जो कोई बड़ी-बूढ़ी आती है बहु कहती पॉंव पडूँ जी। वह कहती बहुत शीली सपूती हो। बूढ़ सुहागन रह।

जब कोई इसके बाप के घर की बात पूछती वह ऐसी मीठी बातों से जवाब देती कि सब प्रसन्*न हो जाती। बिना बातों नहीं बोलती, चुपकी बैठी रहती। वा जब अवसर पाती अपनी पोथी ले बैठती। मुहल्*ले और बिरादरी की बैअर-बानियों में धूम पड़ गई कि फलाने की बहु बड़ी चतुर है। कोई कहती बड़े घर की बेटी है। इसका बाप तहसीलदार है। अंग्रेजी पढ़ा हुआ है। अपनी बेटी को आप पढ़ाया है। कोई कहती जी इसके साथ जो नायन है, वह कहे थी, इसपैं सीनी-पिरोना भी आवे है और भली अच्*छी फुलकारी भी काढ़े है।

सुखदेई का अभी गौना नहीं हुआ था। बाप ही के घर थी। ननद-भावजों का बड़ा प्*यार हो गया। दोनों पढ़ी-पढ़ी मिल गयीं।



सुखदेई इतनी पढ़ी हुई न थी परन्*तु चिट्ठी-पत्री तो अच्*छी तरह से लिख लिया करे थी। इसने अपनी सब पढ़ी हुई भनेलियों को बुलाया और उनका लिखना-पढ़ना अपनी भावज को दिखलाया।

जब दौलतराम बिवाह के लाये थे तो पट्टा फेर करते लाये थे। इसका कारण यह था कि लड़की के बाप घर में पहिले ही कुछ नहीं था। विवाह ही में उघड़ गया। गौना क्*या करेगा? सो तबसे दौलत राम की बहु ज्ञानो ससुराल ही में थी। जब कोई बैअर-बानी बाहर की आती, न तो बैठने को पीढ़ा देती और न उसकी बात पूछती। और जो कुछ कहती भी, तो ऐसी बोलती जैसे कोई लड़े है। सास से तो रात दिन खटपट रक्*खे थी और जब कोई देवरानी को इसके सामने सराहती तो कहती हॉं जी, वह तो अमीर की बेटी है। मैं तो गरीब बनिये की बेटी हूँ। मुँह से कुछ नहीं कहती पर देवरानी को देख-देख फुँकी जाती। और जभी से छोटी ननद से भी जलने लगी। बड़ी ननद पारबती से बड़ा प्*यार था। (और वह विवाह में बुलाई हुई आयी थी) और प्*यार होने का कारण यह था कि वह भी लगावा-बझावा थी। उधर की इधर और इधर की उधर।
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