Re: देवरानी जेठानी की कहानी
ऊँच-नीच सोच के बड़ी देर में यह जवाब दिया कि अच्*छा तो मैं बड़ी बहु में रोटी खा लिया करूंगा। अपना सिर पकड़ कर बैठ गया और कहने लगा कि बिरादरी के लोग हॅसेंगे और ठट्ठे मारेंगे कि फलाने के घर लुगाइयों में लड़ाई हुई थी तो उसने अपने बड़े बेटे को जुदा कर दिया। देखो यह कैसी बहु आई इसने हमारी बात में बट्टा लगाया और घर तीन तेरह कर दिया।
घरवाली बोली अजी जब अपना ही पैसा खोटा हो परखन वाले को क्*या दोष है? जग तो आरसी है जैसा लोग देखेंगे वैसा कहेंगे।
सामने का दालान दौलत राम को दे दिया और सब तरह से जुदा-जोखा कर दिया। जो कोई चीज दुकान से आती दोनों घर आधी-आधी बट जाती।
जब यह खबर गुड़गॉंवें पहुँची कि लाला सर्वसुख के यहॉं औरतों में लड़ाई रहे थी सो उन्*होंने अपने बेटों को जुदा कर दिया है। सो तहसीलदार साहब ने अपनी बेटी को यह चिट्ठी लिखी-
स्*वस्ति श्री सर्वोपमायोग्*य बीबी आनन्*दी जी यहॉं से राम प्रसाद आदि समस्*त बाल गोपाल की राम-राम बंचना। यहॉं क्षेम-कुशल है तुम्*हारी क्षेम-कुशल चाहते हैं। तुम्*हारी मॉं तुमको बहुत याद करे है। सो मैं तुमको बहुत जल्*दी ही बुलाऊँगा। तुम्*हारे छोटे भाई गंगाराम को मदर्से में बिठा दिया है और बड़े भाई राम प्रसाद को तुम्*हारे ताऊ के पास आगरे इस कारण भेज दिया है कि वहॉं कालिज में पढ़कर वकालत का इम्*तहान दे। तुम्*हारी छोटी बहिन भगवान देई एक महिने से मॉंदी है और जब ही से उसका लिखना-पढ़ना छूटा हुआ है। और तुम तो आप बुद्धिमान हो परन्*तु तौ भी जो पिता का धर्म है, दो चार बात लिखना आवश्*यक है। बेटी, जो मैं तुमसे उसी दिन प्रसन्*न हूँगा जब मैं यह सुनूँगा कि तुम्*हारी ससुराल वाले तुमसे प्रसन्*न हैं। तुम्*हारा लिखना-पढ़ना उसी दिन काम आवेगा जब तुम अपनी सास की आज्ञा में रहोगी। सास को माता के तुल्*य जानना। ननद और जेठानी को अपनी बहिनों से अधिक मानना। और यह मैं जानता हूँ कि सब लड़कियों को ससुराल में जाकर प्रथम कठिनता मालूम हुआ करती है और इसका कारण यह है कि बाप के घर तो कुछ और ही चाल-चलन होता है और ससुराल में जाकर नये-नये तौर देखती है। जी घबराया करता है। परन्*तु जो ज्ञानवान लड़कियें हैं घबराती नहीं सब काम किये जाती हैं। यह भी जानना उचित है कि मॉं-बाप का घर तो थोड़े ही दिन के लिए है। सारी अवस्*था ससुराल में ही काटनी है। अपने धर्म-कर्म पर चलना ईश्*वर को याद रखना। आए-गए का आदर सम्*मान करना, सबसे मीठा बोलना, संतोष से अपने कुटुम्*ब में गुजरान करना, आपको तुछ जानना, यह अच्*छे कुल की बेटियों के धर्म हैं। ज्ञान चालीसी की पोथी में तुमने पढ़ा है कि अच्*छों से सबको लाभ होता है। मेरा इस कहने से प्रयोजन यह है कि जो कोई स्*त्री तुम्*हारे कुटुम्*ब की तुमको सीने-पिरोने का काम दे, जो अवसर मिले तो उसे कर देना उचित है। देखो विद्यादान का शास्*त्र में कैसा महात्*मा लिखा है। अर्थात जो बातें तुमको आती हैं, औरों को भी सिखलाना चाहिए। चिट्ठी लिखी मिति पौष शुदि 6 संबत् 1925 ।
यह चिट्ठी छोटेलाल के खत में बंद होकर आई और उसने अपने घर में दे दी।
दौलत राम के जुदे होने से छह महीने पीछे एक लड़की हुई। इधर उसी दिन हापुड़ से चिट्ठी आई कि लाला सर्वसुख जी, अनन्*त चौदस के दिन चार घड़ी दिन चढ़े तुम्*हारे धेवती हुई है।
(उस समय लाला दुकान पर थे) चिट्ठी को पढ़ के लाला ने दौलत राम से कहा कि ले भाई लौंडियों ने घर घेर लिया। यह चिट्ठी अपनी मॉं को सुनाई आ।
दौलत रात की लड़की की छटी तो हो चुकी ही थी। दसूठन के दिन लाला भी घर ही थे और सारे कुटुम्*ब ने उस दिन दौलत राम ही के घर खाया था।
दोपहर को दुकान से एक पल्*लेदार चिट्ठी ले के आया और बोला कि लालाजी यह चिट्ठी तुम्*हारे नाम दिल्*ली से आई है। मुनीम जी ने खोली नहीं तुम्*हारे पास भेज दी है और एक आना महसूल का दिया है।
लाला ने चिट्ठी पढ़ के कहा कि पार्बती की बड़ी लौंडिया का वसन्*त पंचमी का बिवाह है। पंदरह दिन पहिले वह भात नौतने आवेगी सो अब भात का फिकर भी करना चाहिए।
घरवाली बोली कि सुखदेई को छूछक भेजना है। फिर ऐसी ही दो चार गृहस्*त की बातें करके कहा कि छोटेलाल के घर में भी लड़की-बाला होने वाला है। बहु के बाप को एक खत गिरवा देना कि वह साध भेज दे।
धौन भर पक्*के लड्डू, पॉंच तीयल बागे, पॉंच गहने, कुछ मूँग और चावल, एक रुपया नगद छूछक के नाम से नाई के हाथ हापुड़ भेज दिया।
जब पार्वती भात नौतने आयी तो अपनी देवरानी को साथ लायी। गुड़ की भेली देके बोली कि बिवाह में सबको आना होगा। लाला जी ने कहा बीबी, छोटेलाल की तो छुट्टी नही है। दौलतराम भात ले के आवेगा।
और बिवाह से एक दिन पहिले नाई ब्राह्मण को साथ ले दौलत राम भात ले के दिल्*ली में जा पहुँचा।
उस दिन सारी बिरादरी में बुलावा फिर गया कि आज भात लिया जायगा। 51 रुपये नगद, नथ, बिछुआ, छन, पछेली, सोने मूँगे की माला, पायजेब, सोने की हैकल, सोने का बाजू पचलड़ा और नौ नगे, पार्बती के सारे कुटुम्*ब को कपड़े 21 तीयल भरी-भरी, ग्*यारह बरतन, एक दोशाला और एक रुमाल आदि सबको दिखलाके पार्वती के ससुर के हवाले किये। और जब भात ले के डौढ़ी पर पहुँचे थे पार्वती दस-बीस तो स्त्रियों को साथ लिये गीत गाती हुई भाई का आर्ता करने आई थी।
वहॉं दौलत राम को जो कोई पूछता यह कौन साहब हैं वह कह देते कि यह भाती हैं।
इन दिनों छोटेलाल की बहु गर्म चीज न खाती। बहुत करके कोठे पै न जाती और न बोझ उठाती। जब किसी चीज को खाने को जी चाहता तो अपनी सास वा और किसी बड़ी-बढ़ी से पूछ के मँगा लेती। ऐसी-वैसी चीज न खाती। खट्टी चीज को बहुत जी चाहा करे था सो कभी-कभी नीबू का आचार वा कैरी खा ले थी।
जेठ शुदि 3 जुमेरात के दिन छोटेलाल के घर लड़के का जन्*म हुआ। बड़ी खुशी हुई नक्*कारखाना रखा गया। जन्*म पत्री लिखी गई बिरादरी बालों को एक-एक पान का बीड़ा दिया।
वह उठ खड़े हुए और बोले, लाला सर्वसुखजी मुबारिक।
उन्*होंने उत्*तर दिया कि साहब आपको भी मुबारिक।
बाहर जो नाई ब्राह्मण घिर गये थे उन सबको पैसा-पैसा बॉंट दिया। दाई को एक रुपया दिया, वह पॉंच रुपये मॉंगती रही।
जच्*चा के खाने को गूँद की पँजीरी हुई। अब जो भाई बिरादरी और नाते-रिश्*ते में से औरतें आतीं लौंडे की दादी का मुबा*रिक वा बधाई कहके बैठ जातीं।
वह कहती जी, भगवान ने दिया तो है, अब इस्*की उमर लगावे और लहना सहना हो।
नातेदारों और प्*यार-मुलाहजे वालों के यहॉं से कुर्त्*ता, टोपी, हँसली, कडूले आने लगे। धी-ध्*यानों के यहॉं से जो आये थे उनमें से किसी को फेर दिया और किसी का रख लिया और दो-दो चार-चार रुपये जैसा नाता देखा उन पर रख दिये।
तहसीलदार के यहॉं से भी छूछक अच्*छा आया। सारी बिरादरी में वहा-वाह हो गई।
जिनके स्*वभाव खोटे पड़ जा हैं फिर सुधरने कठिन पड़ जा हैं। यह कुछ तो खुशी हुई पर जेठानी एक दिन को भी आ के न खड़ी हुई। छठी और दसूठन के दिन चर्खा ले के बैठी और जिस दिन देवरानी चालीस दिन का न्*हान न्*हा के उठी तो उस बिरियॉं नाक में बत्*ती दे के छींका और सास और देवरानी को सुना-सुना यह कहती कि जिनके नसीब खोटे हैं उनके बेटी हो हैं और जिनके नसीब अच्*छे हैं उनके बेटे हो हैं।
एक दिन सास तो लड़ने को उठी भी पर बहु ने समझा लिया कि जो किसी के कहने सुनने से क्*या हो है? हमारा भगवान भला चाहिए।
जिस दिन हीजड़े नाचने आये लुगाइयों को दिखलाने को पैसा बेल का दे गई।
छोटे लाल ने लौंडे को खिलाने को एक टहलवी रख दी और उससे यह कह दिया कि बच्*चे को राजी राखियो।
लाला ने चार रुपये का घी और एक रुपये की खॉंड़ दूकान से भेज दी। और जब रात को घर आए घरवाली से कह दिया कि घी को ता के रख छोड़यो और बहु की खिछड़ी वा दाल में डाल दिया करियो। खॉंड़ के लड्डू बना लीजो। बहु का शरीर निर्बल हो गया है, इसमें ताकत आ जायगी और बच्*चा दूध से भूखा नहीं रहेगा और बहु से कह दीजों कि ऐसी-वैसी चीज न खाये जिससे बच्*चे को दु:ख हो।
वह आप चतुर थी। दोनों वक्*त बँधा खाना खाती। लाल मिर्च, गुड़, शक्*कर, सीताफल की तरकारी, तेल का अचार, खीरे और अमरूद आदि से परहेज करती। पर होनी क्*या करे? जब लड़का छह महीने का था, एक दिन सिर से न्*हाई थी। भीगे बालों बच्*चे को दूध पिला दिया। सर्दी से उसे खॉंसी का ठसका हो गया। अगले दिन करवा चौथ थी। बर्ती रही और पूरी कचौरी खाने में आई। लौंडे को सॉंस होई आया। बड़ा फिकर हुआ। सास उठावने उठाने लगी और बोल कबूल करने लगी। धन्*ना की मॉं पनिहारी को ननवा चमार को बुलाने भेजा। उसने आते ही झाड़ दिया और अपने पास से लौंडे को गोली खिला दी।
गोली के खाते ही बीमारी और बढ़ गई और लौंडे का हाल बेहाल हो गया। इतने में लाला दुकान से भागे आए। छोटेलाल घर ही था। दोनों की सलाह हुई कि हकीम को दिखलाओ और सारा हाल कह दो। हकीम जी ने कहा कि घबराओ मत, उस पाजी ने जमाल गोटे की गोली दे दी है और वह पच गई है। मैं यह दवा देता हूँ बच्*चे की मॉं के दूध में देना। इससे चार पॉंच दस्*त हो जायेंगे, आराम पड़ जायगा और वैसा ही हुआ।
लाला घर में बड़े गुस्*सा हुए कि अब तो भगवान ने दया की, कोई स्*याना-वाना घर में नहीं बड़ने पावे। यह निर्दयी इसी तरह से बच्*चों को मार डालते है और कुछ नहीं जानते। और बहु से कह दीजो कि फिर भीगे बालों दूध न पिलावे। और भला वह तो बालक है, उसने देखा ही क्*या है? तू तो बड़ी-बूढ़ी थी। पहिले से क्*यों नहीं समझा दिया था?
वह चुप हो रही।
दौलत राम की बहु सब कुछ खाती-पीती रहे थी। जब सास वा ससुर उसके भले की बात कहते, उसका उलटा करती। लौंडिया भी उसकी सूख के कॉंटा हो रही थी और आप भी नित मॉंदी रहे थी।
एक समय गर्मी के दिन थे। दो-तीन धुऍं में रोटी की। दोनों मॉं बेटियों की ऑंखें दुखने आ गयीं। परहेज किया नहीं और बीमारी बढ़ गई। किसी ने बहका दिया कि तुम्*हारी ऑंखें घर के देवता ने पकड़ी हैं। उस दिन से दवाई भी डालनी छोड़ दी। बेचारे दौलत राम को आप चूला फूँकना पड़ा।
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