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Old 18-08-2013, 01:02 PM   #7
dipu
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Default Re: देवरानी जेठानी की कहानी

जब लाला को यह खबर हुई वह एक दिन आके बहुत लड़े कि दवा नहीं डालेगी तो अंधी हो जायेगी। तब कोई पंदरह दिन में रसौत की पौटली से आराम हुआ।

लौंडिया की ऑंखों को पहिले ही आराम हो गया था क्*योंकि दौलत राम हकीमजी के यहॉं दवाई गिरवा लाया करे थे।

छोटे लाल के लड़के का जन्*म का नाम तो कुछ और ही था परन्*तु लाड़ से उसको नन्*हें पुकारने लगे थे। जब वर्ष ही दिन को होगा कि इसकी ऑंखें दुखने आयीं। गर्म-गर्म स्*याही डाली। जस्*त ऑंजा। मलाई के फोहे बॉंधे। नहीं आराम हुआ।

तब इसकी मॉं ने अपनी सास से कहा कि मेरी मॉं मेरे भाई की ऑंखों के वास्*ते एक रगड़ा बनाया करे थी। जो तुम कहो तो नन्*हें की ऑंखों के वास्*ते मैं भी बना लूँ।

उसने कहा अच्*छा।

1 तोला जस्*त, 1तोला रसौत, 6 मासे फटकी, 2 तोले छोटी हड़ बाजार से मँगा के 1 तोले गौ के घी को एक सौ एक बार धोकर उसमें रसौत और फटकी पीस के मिला दी और समूची हड़ों समेत कॉंसी की प्*याली पर रगड़ लिया। नन्*हें की ऑंखों को इसी से आराम हो गया।

इस रगड़े की मुहल्*ले भर में धूम पड़ गई। जिस किसी के बच्*चे की ऑंखें दुखने आतीं, मॉंग के ले जाती और इसे डालते आराम हो जाता। खुरजेवाली की लौंडिया की ऑंखें फिर दुखने आई थीं। इसी रगड़े से आराम हुआ।

एक दिन छोटे लाल की बहु बोली कि सासू जी, जब मेरे लाला दिल्*ली में सरिश्*तेदार थे तो मेरे बड़े भाई को माता रानी का टीका लगवा दिया था। वह भी कहे थे और मैंने भी लिखा देखा है कि जिस बच्*चे को टीका लग जाता है उसके फिर माता नहीं निकलती और जो निकले भी है तो जोर नहीं होता। सो नन्*हें का चाचा (अर्थात बाप) कहे था कि जो मॉं और लाला की मर्जी हो तो नन्*हे के टीका हम भी लगवा दें।

सो मॉं-बाप की आज्ञा से छोटेलाल ने शफाखाने के बड़े बाबू से नन्*हे के टीका लगवा दिया।

जब बच्*चे को दॉंत निकलते है तो बड़ा ही दु:ख होता है। जो दूध पीता है डाल देता है। दस्*त आया करते हैं। शरीर दुर्बल हो जाता है। बच्*चा रोता बहुत है। दूध नहीं पीता। ये ही हालत नन्*हें की हुई।

एक बिरिया ऐसा मॉंदा हुआ कि सबने आस छोड़ दी थी। बकरी के दूध से आराम हुआ था। और एक दिन छोटे लाल आपने साहब की चिट्ठी लिखवा के बड़े डाक्*टर के पास भी नन्*हे को ले गया था। डाक्*टर ने कहा कि जब बच्*चे के दॉंत निकलते हों उसको जंगलों और मैदानों की बहुत सबेरे रोज-रोज हवा खिलायी जाय। इससे अच्*छी और कोई दवा नहीं है।

छोटेलाल ने अपने नौकर को हुक्*म दिया कि जब तक गडूलना बने, नन्*हे को गोद में ले के गोलक बाबू के बाग तक रोज हवा खिला लाया कर।

और नन्*हे जब दो वर्ष का हुआ गडूलने में बैठा कर सूर्य्य कुण्*ड तक भेजने लगे और बहुत करके लाला छोटेलाल आप भी गडूलने के साथ जाया करें थे। इससे नन्*हें का सब रोग जाता रहा और शरीर में बल आया।

रात को दोनों स्*त्री-पुरुष उसे खिलाते और बड़े मगन होते। जब छोटेलाल कहता आओ नन्*हे मेरे पास आओ। वह चट चला जाता और जब उसकी मॉं कहती आओ हमारे पास आओ हम चीजी देंगे वह न आता। तब दोनों हँस पड़ते। और कभी मॉं की खाट पै से बाप की खाट पै चला जाता और कभी रोके फिर चला आता। यह दोनों उसका तमाशा देखा करें थे। जब छोटेलाल किसी प्रकार के संदेह में होता यह चाचा-चाचा कह के उससे लिपट जाता उसका सन्*देह जाता रहता। और उसे गोद में उठा के खिलाने लगता। और कभी कहता कि नन्*हें को अँग्रेजी पढ़ाके रुड़की कालेज में भेजेंगे और इंजिनियर बनावेंगे। उसकी घरवाली कहती कि नहीं इस्*कू तो तुम व*कील बनाना। मेरा ताऊ आगरे में वकील है। हजारों रुपये महीने की आमदनी है और घर के घर है किसी का नौकर नहीं।
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