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Old 18-08-2013, 01:02 PM   #8
dipu
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Default Re: देवरानी जेठानी की कहानी

एक दिन बड़े लाला बाहर चबूतरे पर पोते और पोती को खिला रहे थे। जो कोई लाला का मिलापी उधर जाता लाला कहते सलाम कर भाई यह भी तेरे चाचा हैं। नन्*हें अपने सिर पर हाथ रख लेता। वह हँस पड़ते और कहते जीते रहो।

इतने में दिल्*ला पॉंडे आए। पहिले लाला ने आप पालागन की फिर लड़के से बोले कि हाथ जोड़ पालागन कर, यह हमारे पुरोहित हैं।

उन्*होंने कहा सुखी रहो लाला और फिर बोले, सर्बसुख जी, यह लड़का बड़ा बुद्धिमान और भाग्*यवाला होगा क्*योंकि इसके छीदे दॉंत हैं, चौड़ा माथा है और हँसमुख है। इसकी सगाई बड़े घर की लेना।

लाला ने कहा देखो महाराज, तुम्*हारी दया चाहिए। परमेश्*वर ने बुढ़ापे में यह सूरत दिखाई है। कहीं जीवे सगाई बधाई तो पीछे हैं।

पॉंडेजी ने कहा लाला साहब, दौलत राम की लड़की दुबली क्*यों है?

उन्*होंने कहा महाराज, मॉंदी थी, और चुप हो रहे।

अब दौलतराम की लड़की तीन वर्ष की हो गई थी और जब दो ही वर्ष की थी एक दिन दौलतराम की बहु उसे छोटी दिल्*ली और बड़ी दिल्*ली दिखला रही थी और घू-घू मॉंऊ के खिला रही थी अर्थात कभी उछालती और लपकती और कभी पैरों पर बिठा के उसे नीचे करती। इससे लौंडिया की हँसली उतर गई। रोयी और चिल्*लायी बहुत। वह तो सिबिया की चाची एक पड़ौसन थी। उसे बुलाया। उसने आके चढ़ायी।

एक बिरियॉं ऐसा ही और हुआ था कि यह अपनी लौंडिया को खशखश बराबर नित अफयून दिया करे थी। वह इसलिए कि वह अपने काम धंधे में लगी रही थी, वा चर्ख-पूनी किया करती। लौंडिया नशे में खटोले पर पड़ी हुई खेला करती। एक दिन लौंडिया का जी अच्*छा नहीं था। रोवे बहुत थी। उसने जाना कि इसका नशा उतर गया है, चने बराबर और दे दी। थोड़ी देर पीछे मुँह में झाग-झाग हो गए। हुचकी भरने लगी। यह हाल देख सुखदेई की मॉं ने दौलत राम को दुकान से बुलवाया। वह हकीम जी को लाया। तब उन्*होंने रद्द करने की दवा दी। उससे कुछ आराम पड़ा और लौंडिया मरती-मरती बची।

दौलत राम की बहु की भनेली जिसका नाम नथिया था, कोट पर रहे थी और कभी-कभी इसके पास आया करे थी। उसका मालिक साहब लोगों में कपड़े की फेरी-फिरा करे था। (दीनानाथ कपड़े वाले की दूकान पर नौकर था।) जब सायंकाल को सारे दिन का हारा-थका घर आता, नून-तेल का झीकना ले बैठती। कभी कहती मुझे गहना बना दे, रोती-झींकती, लड़ती-भिड़ती, उसे रोटी न करके देती। कहती कि फलाने की बहु को देख, गहने में लद रही है। उसका मालिक नित नयी चीज लावै है। मेरे तो तेरे घर में आके भाग फूट गए। वह कहता, अरी भागवान, जाने भगवान रोटियों की क्*यों कर गुजारा करे है। तुझे गहने-पाते की सूझ रही है?

एक न सुनती। रात-दिन क्*लेश रखती। वह दु:खी होकर निकल गया और अपनी चिट्ठी भी नहीं भेजी।

एक दिन वह अपनी भनेली से मिलने आई थी। वह तो घर नहीं थी, छोटेलाल की बहु के पास चली गई। उसने बड़े आदर सम्*मान से उसे बिठाया और पूछा कि तुम्*हारा क्*या हाल है? उसने सारी विपता अपनी कही और यह भी कहा कि मैंने सुना है कि बसन्*ती का चाचा (बाप) जैपुर में लक्ष्*मीचन्*द सेठ की दूकान पर मुनीम है। तुम मेरी तर्फ से एक ऐसी चिट्ठी लिख दो कि वह हमको वहॉं बुला ले, वा आप यहॉं चला आए और जैसा मेरा हाल है उसके लिखने में कुछ संदेह मत करो। मैं जीते जी तुम्*हारा गुण नहीं भूलूँगी। छोटेलाल की बहु ने यह चिट्ठी लिखी-

स्*वस्ति श्री सर्वोपरि विराजमान सकल गुण निधान बसंती के लालाजी बसन्*ती की चाची की राम-राम बंचना। जिस दिन से तुम यहॉं से गए हो बाल-बच्*चे मारे-मारे फिरे हैं। तन पै कपड़ा नहीं। पेट की रोटी नहीं। कोई बात नहीं पूछता कि तुम कौन हो। लोग अपने बच्*चे को मेले-ठेले, सैर-तमाशे दिखलाते फिरे हैं और तुम्*हारे बच्*चे गलियों में डकराते फिरे हैं। मेरी विपता का कुछ हाल मत पूछो। पॉंच वर्ष तो इतने कठिन मालूम नहीं दिये, परन्*तु इस काल में जो कुछ था सब बेच खाया। और यह मुझसे खोटी मति स्त्रियों के पास बैठने से ऐसा हुआ। जैसा मैंने किया, वैसा मैंने पाया। अब मेरी पहिली सी बुद्धि नहीं रही। मेरा अपराध क्षमा करो और हमको वहॉं बुला लो या तुम यहॉं चले आओ। आगे और क्*या लिखूँ? चिट्ठी लिखी आश्विन बदि 4, सं 1926 ।

जब ये चिट्ठी उसके पास पहुँची सुनते ही रो पड़ा और फिर वहॉं से आके अपने सारे कुटुम्*ब को जैपुर ले गया।

दौलत राम की लड़की तीन वर्ष की थी कि एक लड़का हुआ। उसका खुशी हुई, परंतु छोटेलाल की बहु बड़ी मगन हुई और कहने लगी कि हे भगवान तैंने मेरी ऊपर बड़ी दया की। जो लौंडिया-सिवाल होती तो मुझे काहे को जीने देती।

उस लड़के नाम कन्*हैया रक्*खा। जो कोई पूछती री लौंडा राजी है।

अच्*छे-बिच्*छे को कहती कि नित मॉंदा रहे है। दूध नहीं पीता।
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