Re: देवरानी जेठानी की कहानी
किसी के सामने दूध नहीं पिलाती, न उसको दिखलाती। गोद में ढँक के बैठ जाती इसलिए कि कभी नजर न लग जाय। नित टोने-टोट*के, गंडे-तावीज करती रहे थी। जो कोई स्*याना-दिवाना आता, इससे रुपया-धेली मार ले जाता अर्थात् जो मूर्ख स्त्रियों के काम हैं, और उनसे किसी प्रकार का लाभ नहीं है, किन्*तु बड़ी हानि है, सब करती और अपनी देवरानी को सुना-सुना और स्त्रियों से कहती कि बहिन, बेटा तो हुआ है जो वैरी जीने देंगे।
जब छोटेलाल की बहु मॉंदी ही थी कि एक लड़का और हुआ। उसका नाम मोहन रक्*खा और उसको धा को इस कारण दे दिया कि बीमारी में बच्*चे की मॉं का दूध सुख गया था। इधर उसका इलाज होने लगा, उधर मोहन धा के पलने लगा। धा का दो रुपये महीना कर दिया और यह कह दिया कि जब लड़के को तुझसे लेंगे राजी कर देंगे।
वह मल्*याने गॉंव में शहर से दो कोस अन्*तर से रहे थी। तीज-त्*यौहार के दिन आती, त्*यौहारी ले जाती और जब कभी छोटेलाल वा उसका लाला घर होते, चौअन्*नी वा अठन्*नी धा को दे देते और उसकी लल्*लो-पत्*तो कर देते कि घबराइयो मत, इस घर से तुझे बहुत कुछ मिलेगा।
और वह धा जाटनी थी उसका जाट लाला की दुकान पर पैंठ के दिन घी बेचने आया करे था। सो लाला उससे भी कह दिया करें थे कि भाई हमारे-तुम्*हारे घर की सी बात है, और वह लौंडा तुम्*हारा ही है। उसको राजी रखना।
छोटेलाल की बहु को तो जब ही आराम हो गया था। पॉंचवे वर्ष लड़के को धा से लेने की सलाह ठहरी।
ए*क दिन मुहूर्त्*त दिखलाके उस जाट से कह दिया कि फलाने दिन तुम दोनों चार घड़ी दिन चढ़े लड़के को लेके चले आओ। वह आ गए। पच्*चीस रुपये और दोनों जाटनी और जाट को पॉंचों कपड़े और एक रुपया उसकी भंगन आदि को देके छोटेलाल की बहु ने जाटनी की गोद में से लड़के को अपनी गोद में ले लिया। उसकी सास ने कहा बहिन तेरे लायक तो कुछ है नहीं। तुम्*हें जो दें सो थोड़ा। आगे तेरा घर है, भगवान इसकी उमर लगावे। तुझे बहुत कुछ देगा।
बहु की गोद में लड़का रोने लगा ओर कहने लगा कि मैं तो अपनी मॉं के पास जाऊँगा।
सबने कहा यही तेरी मॉं है वह न माना और जाटनी की गोद में आ गया और कहने लगा कि मॉं घर को चल।
जाटनी ऑंसू भर लायी और कहने लगी बेटा यही तेरी मॉं है और यही तेरा घर है।
सुखदेई की मॉं ने कहा बीबी, दो चार दिन अभी तू यहीं रह। जब पर्च जायेगा अपने घर चली जाइयो।
यह सब जानते है कि छोटे बेटे पर बहुत प्*यार होता है, और पुत्र से प्*यारा क्*या है? जिसके घर में इतना धन-दौलत हो उसके लाड़-प्*यार का क्*या ठिकाना है?
जब छोटेलाल दफ्तर से आता बाहर से ही पुकारता बेटा मोहन!
वह भी घर में से भाग जाता और बाप के हाथ में से रूमाल छीन कर ले आता। उसमें कभी दालसेंवी और कभी बालूशाही और इमर्ती पाता और मॉं को दे देता। मॉं बड़े को तो दादी का लाडला बतलाती और छोटे को आप ऐसा चाहती कि आठों पहर अपनी ऑंखो के सामने रखती। किसी का भरोसा न करती। जहॉं आप जाती उसे साथ ले जाती। थोड़े ही दिन में उसे सौ तक गिनती सिखला दी। नागरी के सारे अक्षर बतला दिये।
नन्**हे की अवस्*था सात वर्ष की थी जब उसे पॉंडे के यहॉं मुहूर्त्*त कराके अंग्रेजी पढ़ने को मदर्से में बिठला दिया था।
नन्*हे की सगाई कई जगह से आई पर छोटेलाल और उसकी बहु ने फेर-फेर दी और यह कहा जब पंदरह-सोलह वर्ष का होगा तब बिवाह-सगाई करेंगे।
बाबा-दादी ने कहा यह तुम क्*या गजब करे हो? जब स्*याना हो जायगा, कौन बिवाह-सगाई करेगा? लोग कहेंगे कि यह जाति में खोटे होंगे जो अब तक बिवाह नहीं हुआ।
लाचार इनको बुलन्*द शहर की सगाई रखनी पड़ी और जिस दिन सगाई ली गई और नन्**हे टीका करवा के उठा दौलतराम की बहु उसी समय बाहर से आग लायी। चक्*की पीसने बैठी। सिर धोया और अपनी मरी मॉं को याद कर बहुत रोई।
सबने बुरा कहा और दौलतराम भी बहुत गुस्*सा हुआ।
छोटेलाल की बहु की मामा की बेटी दिल्*ली से मेरठ में बिवाही हुई आई थी। उसकी बेटी जब नौ वर्ष की थी कोयल में शिवलाल बनिये के बेटे से बिवाही गई थी और उसके भी एक ही बेटा था।
एक दिन कोठे पर खड़ा पतंग उड़ा रहा था और पेच लड़ा रहा था। ऊपर को दृष्टि थी, आगे जो बढ़ा, धड़ाम दे तिमंजिले पर से नीचे आ रहा और पत्*थर पर गिरा। हड्डियों का चकनाचूर हो गया। सिर में बहुत चोट लगी। दो दिन जिया तीसरे दिन मर गया।
सो दिल्*ली वाली की लौंडिया दस वर्ष की अवस्*था में विधवा हो गई थी। किरपी नाम था। बड़ी भोली-भोली लौंडिया थी। ऊपर को निगाह उठा के नहीं देखी थी। अपनी मासी से विष्*णु सहस्*त्रनाम पढ़ लिया था। नित पाठ किया करे थी और जाप करे थी। कथा-वार्त्*ता सुनती रहे थी। कार्तिक और माघ न्*हाती। चन्*द्रायण के व्रत करती। मॉं ने तुलसी का बिवाह और अनन्*त चौदस का उद्दापन करवा दिया था। जगन्*नाथ और बद्रीनाथ के दर्शन भी कर आई थी। कभी-कभी अपनी मॉं के पास मासी से मिलने आया करे थी।
वह इसे देख-देख बड़ी दु:खी होती और अपनी बहिन से कहती कि देखो इस लौंडिया ने देखा ही क्*या है? यह क्*या जानेगी कि मैं भी जगत में आई थी। किसी के जी की कोई क्*या जाने है। इसके जी में क्*या-क्*या आती होगी। इसके साथ की लौंडियें अच्*छा खावे हैं, पहिने हैं। हँसे हैं, बोले हैं। गावें हैं, बजावे हैं। क्*या इसका जी नहीं चाहता होगा? सात फेरो की गुनहगार है। पत्*थर तो हमारी जाति में पड़े हैं। मुसलमानों और साहब लोगों में दूसरा बिवाह हो जाय है और अब तो बंगालियों में भी होने लगा। जाट, गूजर, नाई, धोबी, कहार, अहीर आदियों में तो दूसरे बिवाह की कुछ रोक-टोक नहीं। आगे धर्मशास्*त्र में भी लिखा है कि जिस स्*त्री का उसके पति से सम्*भाषण नहीं हुआ हो और बिवाह के पीछे पति का देहान्*त हो जाय तो वहॉं पुनर्बिवाह योग्*य है अर्थात् उस स्*त्री का दूसरा बिवाह कर देने से कुछ दोस नहीं।
वह सुन के कहने लगी फिर क्*या कीजिये, बहिन। लौकिक के बिरुद्ध भी तो नहीं किया जाता।
दौलतराम की लौंडिया मुलिया ने कनागतों में गोबर की सॉंझी बनाई, दीवे बले मुहल्*ले की लौंडिये इखट्टी हो जातीं और यह गीत गातीं।
सॉंझी री क्*या ओढ़े क्*या पहिनेगी।
काहें का सीस गुँदावेगी?
शालू ओढूँगी मसरु पहनूँगी।
सोने का सीस गूँदाऊँगी।
जब गीत गा लेतीं लौंडियों को चौले बाटे जाते। नन्*हे और मोहन भी कभी-कभी लौंडियों के पास चले जाते और उनके साथ गीत गाते।
उसकी मॉं कहती ना मुन्*ना, लौंडे लौंडियों के गीत नहीं गाते हैं।
एक दिन बड़ा भाई तो चला आया था छोटा भाई वहीं बैठा रहा। नींद जो आयी, पड़के सो गया। जब लौंडिये गीत गा के चली गयीं और मोहन घर नहीं गया तो उसकी मॉं आई। देखे तो धरती पर पड़ा सोवे है। गोद में उठा के ले गई। घर जाकर देखा तो एक हाथ में कड़ा नहीं और चोटी के बाल कतरे हुए हैं।
उसने अपनी सास से कहा। बहुतेरी कोस-कटाई हुई। भगवान जाने किसने लिया और यह काम किसने किया क्*योंकि बाहर से बड़ी लौंडियें भी तो आई थीं। परन्*तु दौलतराम की बहु का नाम हुआ और निस्*सन्*देह यह थी भी खोटी।
जब कभी लौंडे लौंडिया के साथ खेलते हुई ताई-ताई करते इसके घर जाते, मुँह से न बोलती। माथे में तील बल डाल लेती। भला बालकों में क्*या बैर विषवाद है? यह तो भगवान के जीव हैं। इनसे तो सबको मीठा बोलना चाहिए।
जब कभी लौंडिया मुलिया दीदी के पास जाती, चाची पुकार लेती। प्*यार करके अपने पास बिठाती। जो चीज लौंडो को खिलाती पहिले इसको देती और बेटों को बराबर चाहती। लौंडिया को अपने हाथ से गुडि़या बना दी थी। कातने का रंगीन चर्खा मँगा दी थी और लौंडियों के साथ इसको भी सीना सिखलाती। और एक-एक दो-दो अक्षर बतलाती जाती।
सब लौंडी-लारों को दुकान से पैसा-पैसा रोज मिला करे था। दौलत राम की बहु ने एक गुल्*लक बना रक्खी थी सो कन्*हैया और मुलिया के पैसे उसी में गेरती जाती। वर्ष दिन पीछे जो गुल्*लक को तोड़ा तो उसमें ग्*यारह रुपये ।=)।। के पैसे निकले। सो मुलिया की झॉंवर बना दीं। इन बातों में तो बड़ी चतुर थी। और भी इसने इसी प्रकार से सौ रुपये जोड़ लिये थे और वह ब्*याजू दे रक्*खे थे।
छोटेलाल की बहु ने एक पैसा भी नहीं जोड़ा था। जो लौंडे लाये, सब खर्च करा दिये। इस कारण केवल जोड़ने और जमा करने के विषय में दौलत राम की बहु सराहने योग्*य थी।
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