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Old 18-08-2013, 01:03 PM   #10
dipu
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Default Re: देवरानी जेठानी की कहानी

एक दिन मोहन संध्*या समय खेलते-खेलते घर में से बाहर चला आया। दिवाली के दिन थे। एक जुआरी ने (जो देखने में भला आदमी दीख पड़े था) आते ही मोहन को गोद में उठा लिया और कहा कि तेरे बाबा ने तुझे खॉंड़ के खिलौने देने को बुलाया है और आज बाजार में बड़ा तमाशा होगा।

यह बालक ही तो था। बोला मैं अपनी मॉं से पूछ आऊँ। उसने कहा मैं तेरी मॉं से पूछ आया हूँ। तुझे तमाशा दिखा के छोड़ जाऊँगा। जाड़ा-जाड़ा कहके उसे अपनी चादर में दुबका लिया और जंगल को ले गया। अँधेरी रात थी। चिम्*मन तिवाड़ी के बाग में ले जा के उससे बोला कि तुम मुझे अपना गहना दे दो।

वह रोने लगा। फिर उसने कहा जो रोवेगा तो गला घोंट के कुएं में गेर दूँगा।

तुम जानो अपनी जान सबको प्*यारी है। बेचारा बालक डर गया और चुप हो रहा। उसने इसके कड़े, बाली और तगड़ी उतार ली और बायें हाथ की उँगली में जो सोने की अँगूठी थी उसकू ऐसा दॉंतो से किचकिचा कर खेंचा कि उँगली में लहू निकलने लगा। फिर इस निर्दयी ने उस बालक से पूछा कि तू मुझे पहिचाने भी है?

उसने कहा नहीं।

यह सुन और उसे एक गढ़े में धक्*का दे चंपत हुआ।

उधर जब दीवे बल गये और मोहन घर नहीं आया तो वहॉं तला-बेली पड़ी।

दादी मुहल्*ले के लौंडों के घर पूछने गई। उन्*होंने कहा वह एक आदमी के साथ तमाशा देखने दुकान गया है।

दुकान को आदमी दौड़ाया वहॉं कहॉं था? यह खबर सुनते ही लाला और दौलतराम दोनों उठे चले आये और छोटेलाल भी घर आ गया।

मुहल्*ले और सारे शहर में ढूँढ़ फिरे। कहीं कुछ पता न लगा। फिर यह सलाह ठहरी कि कोतवाली में लिखवाओ और ढँढोरा पिटवाओ। इसमें पहर भर रात जाती रही। स्त्रियें रोवें और चिल्*लायें। कभी गंगाजी का प्रशाद और कभी हनूमान के बाह्यण बोले। मर्दों के मुँह फक्*क पड़ रहे। औरतों पर गुस्*से हों कि लौंडे को इन्*होंने खोया कि क्*यों गहना पहनाया था? मोहन के जान इनके गहने ने ली।

अब सबको यही सन्*देह हुआ कि किसी ने गहने की लालच गला घोंट के कुएं में गेर दिया।

बड़े लाला ने जमादार के कहने से पॉंच सात पल्*लेदार बुलवा, मशालें जलवा, सब दरवाजों से बाहर लोगों को देखने भेजा। बागों और मंदिरों के कुओं में कॉंटे डाल-डाल सब जगह देखा। जब चिम्*मन तिवाड़ी के बाग में पहुँचे उस मशाल के साथ दौलतराम था। कुएं को देख जुहीं आगे बढ़े और गढ़े के पास को निकले तो दौलतराम के कान में किसी बालक के सुबकने का शब्*द सुनाई दिया।

उसने कहा ठहरो और इस गढ़े में देखो।

देखा तो एक ओर बालक सुबक रहा है उसी समय हुसैनी पल्*लेदार कूद पड़ा और मोहन-मोहन कह उसे उठा लिया और ऊपर ले आया।

देखा तो सारा शरीर लहुलुहान हो रहा है। इसका कारण यह था कि उस गढ़े में एक कीकड़ का पेड़ था। जब उस निर्दयी ने धक्*का दिया था तो वह कॉंटों पर जाकर गिरा था फिर उसे घर ले आये। बाबा ने देखते ही छाती से लगा लिया।

लोगों ने कहा लाला साहब मोहन का तो नया जन्*म हुआ है। लाला ने पूछा मुन्*ना तुझे कौन ले गया था।

उसने सारा हाल बतलाया और कहा कि मै उसे पहिचानता नहीं।

लोग बोले ये ही बात अच्*छी हुई। फिर मोहन को घर में भेज दिया।

मॉं दादी गले लगाके बहुत रोयी। इतने में छोटेलाल भी जो मशाल ले के ढूँढ़ने गया था आन पहुँचा और मोहन को देख बड़ा आनन्*द हुआ। दौलतराम की बहु सबके सामने कहने लगी कि अब मेरे जी में जी आया है। भगवान ने बड़ी दया की। परन्*तु मन की बात परमेश्*वर ही जाने।

लाला ने सब लड़की-बालों के कड़े-बाली उतरवा दिये और कह दिया कि फिर कोई नहीं पहनाने पावे।

अगले दिन पॉंच रुपये के लड्डू मुहल्*ले और बिरादरी में बॉंटे गये और कुछ दान-पुन्*न भी कराया।

दौलत राम की लड़की का सम्*बन्*ध अतरौली में चुन्*नीलाल कसेरे के बेटे से हुआ था।

उन्*हीं दिनों किसी ने लाला सर्वसुखजी से कहा कि लाला जी तुमने कहॉं सगाई कर दी। वह तो तुम्**हारी बराबरी के नहीं है। बरात भी हलकी लावेंगे।

उन्*होंने यह उत्*तर दिया था कि भाई मैंने तो घर-वर दोनों अच्*छे देख लिए हैं। उनका बड़ा कुटुम्*ब है। सादा चलन है। लड़का लिखा-पढ़ा है। दूकान का कारबार अपने हाथ से करे है और बड़ा चतुर है। रुपया-पैसा किसी की जाति नहीं। ऊपर की टीप-टाप अच्*छी नहीं होती। मनुष्*य को चाहिए कि जितनी चादर देखे उतने पॉंव पसारे। मुझे यह बात अच्*छी नहीं लगती। जैसे और हमारे बनिये हाट-हवेली गिर्वी रखके वा दूकान में से हजार दो हजार रुपये जो बड़ी कठिनाई से पैदा किये हैं, बिवाह में लगाकर बिगड़ जाते हैं।

अब मुलिया का बिवाह फुलैरा दोज का ठहर गया। दिन के दिन बराती आयी।

जब बरात चढ़ ली और जनवासे में जा ठहरी, गाड़ीवानों को भूसा दिलवा दिया गया। इक्*कावन रुपये नकद, सोने के पॉंच गहने, तीन सौ रुपये की मालियत, पॉंच बरतन, जरी का जामा, एक घोड़ा और पालकी यहॉं से खेत में गया। जब खेत देके लौटे तो यह कहते आये कि लाला साहब जीमने की जल्*दी करो। दस बजे से पहिले के फेरे हैं। ऐसा न हो कि लगन टल जाय।

जब बरात जीमने को आयी तो नौशा इसलिए नहीं आया कि क्*वारे नाते नहीं जिमाते हैं। सत पकवानी हुई थी। सबने प्रसन्*न होकर खाया और जब जीम चुके, मँढे के नीचे फेरों को बैठ गए।

दिलाराम पॉंडे और एक ब्राह्मण ने जो समधियों की ओर था, मिलकर बिवाह करा दिया। फेरों पर से उठ के भूर बॉंटी और फिर समधी जनवासे में चले गए।

जब कोई पहर भर दिन चढ़ा, बरात में से लड़कों को बुला भेजा कि बस्*यावल जीम जाओ। दोपहर पीछे बेटी वाले के यहॉं से नौतनी गई। रात को बराती ताशे बजवाते जाजकियों से गवाते, अनार और माहताबी छोड़ते जीमने आए।

अगले दिन जब बरी-पुरी हो ली, बिदा की ठहरी।

उस समय लाला सर्वसुख जी ने सब बरातियों के एक-ए*क रुपये, नारियल, टीके किया। उसमें बड़ी वाह-वाह रही। इक्*कीस तियल, एक दोशाला, ग्*यारह बरतन,एक बड़ा भारी टोकना,कुछ रुपये नकद और पकवान आदि उस समय समधी को दिया। और कमीनों को ले-दे लाला सर्वसुख और दौलतराम ने हाथ जोड़ के कहा कि लाला साहब हमसे कुछ नहीं बन आया तुमने हमको ढक लिया।

वह बोले लाला तुमने हमारा घर भर के बाहर भर दिया।

फिर दुलहा और दुलहन को पलंग पर बिठा के धान बोये। लौंडिया रोने लगी कि मैं तो सासू के नहीं जाऊँगी। उस समय उसकी मॉं, दादी और चाची समेत और जो स्त्रियें खड़ी थीं सब आँसू भर लायीं उन सबको रोते देख दौलतराम की ऑंखों में से भी ऑंसू निकल पड़े और कहने लगा बेटी रोवे मत, तुझे जल्*दी बुला लेंगे। फिर लड़की और लड़के को पालकी में बिठा दिया और बुढ़ाने दरवाजे तक सब बिरादरी के आदमी बारात को पहुँचाने आए। समधियों से राम-राम कर अपने–अपने घर चले गए।

लाला सर्वसुखजी की सलाह तीन रोटी देने की थी। कहीं छोटेलाल के मुँह से निकल गई थी कि दो ही रोटी बहुत है। इस बात पर दौलतराम की बहु बहुत नाची-कूदी और कहने लगी कि छोटेलाल की गॉंठ का क्*या खर्च हो था? अभी तो मालिक बैठा है।

नन्*हे की सगाई बुलन्*द शहर में झुन्*नी-मुन्*नी के यहॉं हुई थी। वह खत्*ती भरा करें थे। नाज का भाव जो गिरा उन्*होंने अपनी चारों खत्*ती बेच दीं। इसमें उनकू दो हजार रुपये बन रहे। सो उन्*होंने यह सलाह की कि भाई लौंडिया का बिवाह कर दो। यह इसी के भाग के हैं।

बिवाह सुझवा के सर्वसुखजी को एक चिट्ठी भेजी कि सतवा तीज का बिवाह न केवल सूझे है बहुत शुभ भी है सो तुमको रखना होगा और पीछे से नाई साहे चिट्ठी लेके आवेगा।
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