Re: इस्लाम के पैग़म्बर :हज़रत मुहम्मद (सल्ल. )-प
पैग़म्बर से अमर प्रेम
आरम्भिक काल के इसलाम स्वीकार करनेवालों के ऐतिहासिक किस्से पढ़िए तो इन बेक़ुसूर मर्दों और औरतों पर ढाए गए ग़ैर इंसानी अत्याचारों को देखकर कौन-सा दिल है जो रो न पड़ेगा? एक मासूम औरत सुमैया को बेरहमी के साथ बरछे मार-मार कर हलाक कर डाला गया। एक मिसाल यासिर की भी है, जिनकी टांगों को दो ऊटों से बाँध दिया गया और फिर उन ऊँटों को विपरित दिशा में हाँका गया। ख़ब्बाब बिन अरत को धधकते हुए कोयलों पर लिटाकर निर्दयी ज़ालिम उनके सीने पर खड़ा हो गया, ताकि वे हिल-डुल न सकें, यहाँ तक कि उनकी खाल जल गई और चर्बी पिघलकर निकल पड़ी। और ख़ब्बाब बिन अरत के गोश्त को निर्ममता से नोच-नोचकर तथा उनके अंग काट-काटकर उनकी हत्या की गई। इन यातनाओं के दौरान उनसे पूछा गया कि क्या अब वे यह न चाहेंगे कि उनकी जगह पर पैग़म्बर मुहम्मद होते? (जो कि उस वक्त अपने घरवालों के साथ अपने घर में थे) तो पीड़ित खब्बाब ने ऊँचे स्वर में कहा कि पैग़म्बर मुहम्मद को एक कांटा चुभने की मामूली तकलीफ़ से बचाने के लिए भी वे अपनी जान, अपने बच्चों एवं परिवार, अपना सब कुछ कु़र्बान करने के लिए तैयार हैं। इस तरह के दिल दहलानेवाले बहुत-से वाक़िए पेश किए जा सकते हैं, लेकिन ये सब घटनाएँ आख़िर क्या सिद्ध करती हैं? ऐसा कैसे हो सका कि इस्लाम के इन बेटे और बेटियों ने अपने पैग़म्बर के प्रति केवल निष्ठा ही नहीं दिखाई, बल्कि उन्होंने अपने शरीर, हृदय और आत्मा का नज़राना पैश किया? पैग़म्बर मुहम्मद के प्रति उनके निकटतम अनुयायियों की यह दृढ़ आस्था और विश्वास, क्या उस कार्य के प्रति, जो पैग़म्बर मुहम्मद के सुपुर्द किया गया था, उनकी ईमानदारी, निष्पक्षता तथा तन्मयता का अत्यन्त उत्तम प्रमाण नहीं है?
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