27-11-2012, 07:21 AM
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Re: आम आदमी पार्टी का भविष्य????
किसी बुद्धिजीवी ने कहा है की राजनीति में हर 5 साल में एक बार परीक्षा होती है अगर पास हुए तो ठीक है नहीं तो फिर 5 साल इंतज़ार करना पड़ता है। इससे हम लोग अंदाज़ा लगा सकते हैं की राजनीति की डगर कितनी मुश्किलों से भरी हुई है।
भारत की राजनीति के कुछ खास पहलुओ पर भी नज़र डालनी होगी।
- बड़े बड़े उद्योगपति चुनाव में पार्टियों को फण्ड करते है, सब कुछ लुका छिपा कर होता है, फिर जो नेता चुनाव जीतते है वो उन्ही कॉर्पोरेट के लोगो के लिए काम करते है, और आम जनता मरती रहती है।
- अधिकतर लोग केवल जात पात, धर्म की नाम पर वोट देते हैं।
- लोक सभा का इलेक्शन में करीब 10 करोड़ से भी अधिक का खर्चा आता है, और विधान सभा में 1 करोड़ से भी अधिक का। अब चूँकि चुनाव जितने में इतना इन्वेस्टमेंट है तो जितने के बाद इसकी रिकवरी भी तो करनी पड़ती है, तो ऐसे भी भ्रष्टाचार होता है, देश और गरीब जनता का पैसा लुटा जाता है।
- जो लोग कहते है भारत में डेमोक्रेसी है, पूरी बकवास करते हैं, भारत में अभी भी मोनार्की है वो भी 21वी सदी से स्टाइल में। राजनीति कुछ परिवारों के फॅमिली बिज़नस है। जैसे गांधी परिवार, पहली दादी प्रधान मंत्री थी, फिर पिता जी प्रधान मंत्री बने अब 2014 में देखिएगा अपने 44 साल के युवा प्रधान मंत्री बनेगे। संसद में 30 साल से कम से सारे सांसद राजनैतिक फैमिलीज़ से हैं। 40 से कम के 75 प्रतिशत सांसद पोलिटिकल फैमिलीज़ से हैं।
- भारत के मिडिल क्लास बहुत ही कम वोट डालने जाता है, बड़े शहरो में लोग पढ़ी लिखे लोग, बड़ी कम्पनीज में काम करने वाले, अंग्रेजी बोलने वाले लोग चुनाव वाले दिन छुट्टी मनाते है, और अगर चुनाव शुक्रवार के दिन हुआ तो लॉन्ग वीकेंड मनाने फॅमिली के साथ किसी रिसोर्ट पर चले जाते हैं। बैंगलोर में करीब में 6 साल से हूँ। यह सब में अपने निजी एक्सपीरियंस से लिख रहा हूँ।
- राजनीति में एक और खास बात है, अगर किसी नेता कोई जेल हो जाए या भ्रष्टाचार में पकड़ा जाए तो उसे पब्लिक की जबरदस्त सहानभूति मिल जाती है और फिर वो चुनाव में भी जीत जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार में कई सारे गुंडे मवाली भी विधान सभा में हैं। यह जग जाहिर बात है। अभी आंध्र प्रदेश में ysr कांग्रेस पार्टी काफी अच्छी हालत में है क्योंकि इसके नेता जगमोहन रेड्डी जेल में है।
- देश में क्षेत्रीय पार्टियों ने देश की हालत ख़राब कर के रख दी है, और सब फॅमिली पॉलिटिक्स, भ्रष्टाचार के दलदल में बुरी तरह फंसे हुए हैं। बिहार में लालू फॅमिली राज्नीतीं में है तो तमिलनाडु में करूणानिधि ने 4 शादी करके और खूब सारे बच्चे पैदा करके सबको राजनीति में उतारा हुआ है। महाराष्ट्र में शरद पवार की फॅमिली है तो उत्तर प्रदेश में अपनी यादव फॅमिली है। पति पत्नी बाप चाचा मामा सब संसद नहीं तो विधान सभा में। मुलायम ने राजनीति में आकर अपने आने वाले 7 पुश्तो का भला कर दिया है।
- एक और महत्वपूर्ण बात है चुनाव रैलिया जिसमे पता नहीं कैसे लाखो की भीड़ जमा हो जाती है, मैं सोचता हूँ कौन है यह लोग जो इस तरह की रैलियों में जाते हैं। फिर यह पता चलता है अधिकतर लोगो को पैसा देकर और चाय नास्ता का लालच देकर बुलाया जाता है। और बड़ी रैलियों में लाखो रुपयों का खर्चा होता है। सब कुछ काले धन से होता है। कई बार यह बड़ी रैलिया चुनाव नतीजों पर गहरा असर डालती हैं।
- एक और भारतीय राजनीति की अनूठी चीज़ है वो है वोट बैंक की राजनीति, अगर नरेन्द्र मोदी गुजरात में दुध, दही और शहद की नदिया भी बहा दे, 24 घटे नॉन स्टॉप पॉवर सप्लाई दे दे, हर बेरोजगार को रोजगार दे दे, तो भी वहां की सबसे बड़ी माइनॉरिटी कम्युनिटी उनको वोट नहीं देगी, इसको कहते है वोट बैंक की राजनीति। यह सबसे पहले शुरू किया था कांग्रेस ने और आज सब कर रहे हैं। कांग्रेस मुस्लिमो के वोट कर लिए वोट बैंक की राजनीति करती है तो बीजेपी हिन्दुओ के वोट के लिए। ममता बनर्जी शुक्रवार को जुम्मावार बोलती है ताकि उनको लगता है इससे पश्चिम बंगाल की 30 प्रतिशत जनता खुश रहेगी और उनको वोट देगी। समाजवादी पार्टी के नेता अफ़ज़ल गुरु को दोषी कहने से बचते रहते है क्योंकि उनको लगता है की उनका वोट बैंक ना खिसक जाए। बीजेपी हर चुनाव के पहले राम मंदिर का मुद्दा उठाने लगती है। गो हत्या पर प्रतिबन्ध की बात करने लगती है। असाम में सीमाओं को बांग्लादेश के लिए खोल दिया जाता है ताकि वहां के और लोग आये और कांग्रेस का वोट बैंक बने।
- एक और चीज़ है वो है नार्थ इंडिया और साउथ इंडिया में अंतर। उत्तर भारत इसमें हम लोग महाराष्ट्र को भी ले लेंगे, हमेशा से राजनीति में काफी एक्टिव रहा है। स्वतंत्रता संग्राम में भी उत्तर भारत से भी ज्यादा कॉन्ट्रिब्यूशन हुआ था, साउथ इंडिया को अगर कड़े शब्दों में कहा जाए अंग्रेजो से कोई खास दिक्कत नहीं थी। आप फ्रीडम struggle के इतिहास उठा कर देख लीजिये बहुत कम नेता मिलेंगे आपको जो की दक्षिण भारत से थे। आज आम आदमी पार्टी में भी दक्षिण का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। 1977 के चुनाव में इंदिरा गाँधी का उत्तर भारत में पूरा पत्ता साफ़ हो गया था लेकिन दक्षिण में तब भी उन्हें अपार जन समर्थन मिला था। कहने का मतलब यह है की दक्षिण भारत में जो है ठीक है वाला हिसाब किताब है, यहाँ तो लोग नेता के मरने पर सुसाइड ही कर लेते हैं, पता नहीं कैसी अंध भक्ति है। इसलिए मुझे नहीं लगता दक्षिण भारत में कभी भी कोई जन लोकपाल बिल जैसा कोई बड़ा आन्दोलन हो सकता है। द्रविड़ियन और आर्यों वाली थ्योरी मुझे यहाँ सही नज़र आती है जिसमे कहाँ गया था पहले पुरे भारत में द्रविड़ जाति के लोग रहते थे फिर मध्य यूरोप से आर्य आये और उत्तर भारत में ब़स गए।
अगर briefly कहा जाए तो जब तक भारत में चुनाव लड़ने में करोड़ो रुपैये लगेंगे, मिडिल क्लास वोट डालने नहीं जाएगा, कॉर्पोरेट और नेताओ की मिलीभगत और वोट बैंक की राजनीति खत्म नहीं होगी तब तक भारतीय राजनीति में कुछ अच्छे की आशा करना बेकार है।
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