Re: Muhobbat
यातना की भट्टी में जलकर, सारी उपेक्षा सहकर, प्रेम करने और अन्त तक अपने निर्णय पर कायम रहने का साहस प्रभा खेतान ने ही दिखाया। इनके प्रेम में कहीं भी सयानापन नहीं, कपट नहीं, निश्छल मन से सबकुछ देने का भाव दिखता है और अपनी आत्मकथा में सबकुछ स्वीकार कर लेने का साहस भी। चूँकि बात प्रेम की हो रही है तो एक प्रेमिका की आकांक्षा को जानना जरूरी है, जो खलील जिब्रान की महबूबा ने अपने महबूत कवि के लिए की थी ‘‘मैं चाहती हूँ कि तुम मुझे उस तरह प्यार करो जैसे एक कवि अपने ग़मग़ीन ख्यालात को करता है। मैं चाहती हूँ, तुम मुझे उस मुसाफिर की याद की तरह याद रखो जिसकी सोंच में पानी से भरा तालाब है, जिसका पानी पीते हुए उसने अपनी छवि उस पानी में देखी हो। मेरी इच्छा है, तुम उस माँ की तरह मुझे याद रखो, जिसका बच्चा दिन की रौशनी देखने से पहले मौत के अंधेरे में डूब गया हो। मेरी आरजू है कि तुम मुझे उसे रहमदिल बादशाह की तरह याद करो जिसकी क्षमा घोषणा से पहले कै़दी मर गया हो।’’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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