Re: Muhobbat
प्रेम एक ऐसा अहसास है, जिसे करने वाला ही जानता है। हिन्दी की प्रतिष्ठित लेखिका कुसुम अंसल ने लिखा है - ‘‘प्रेम एक इच्छा है, एक इच्छा जो विशेष इच्छा के रुप में प्रत्येक हृदय में बहती तरंगित होती है। यह इच्छा मात्र स्त्री-पुरुष ही नहीं वृक्ष की जड़ और फूलों में भी होती है, श्वास और वायु में भी होती है। प्रेम स्त्री-पुरष के मध्य घटित होता है जिसे शायद शरीर के पाँच तत्व भी चाहें तो ढूँढ नहीं पाते। प्रेम को हवा की तरह ओढ़ा जा सकता है, समुद्र सा लपेटा जा सकता है और पर्वतों की तरह बाहों के बंधन में आलिंगित किया जा सकता है। प्रेम हमारा वायदा है अपने आपसे से किया हुआ जिसे हमें निभाना होता है। मुझे लगता था प्रेम कोई प्रक्रिया या प्रोसेस नहीं है ,जिसमें शरीरों का जुड़ना या बिछुड़ना शामिल होता है, प्रेम तो बीज की तरह अंकुरित होता है, और फूल सा खिलता है। यह मनुष्य के भीतर सूक्ष्म सी मानवीय चेतना है जो ऊपर उठकर अजन्मा शाश्वत में बदल जाती है।’’ अतः प्रभा खेतान का प्रेम एक ऐसा ही सूक्ष्म अहसास है जो वाद-विवाद, नैतिकता-अनैतिकता की परवाह किये बिना सिर्फ मन की आवाज सुनता है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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