Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
हे राजन्! यह समुद्र मानो जीवन्मुक्त है क्योंकि जल से भी मर्यादा नहीं छोड़ता और रागद्वेष से रहित है | किसी स्थान में दैत्य रहते हैं, कहीं पंखोंसंयुक्त पर्वत, कहीं बड़वाग्नि और कहीं रत्न हैं परन्तु समुद्र को न किसी स्थान में राग है, न द्वेष हे | जैसे ज्ञानवान् को किसी में रागद्वेष नहीं होता परन्तु सबमें ज्ञानवान् कोई बिरला होता है | जैसे जिस सीपी और बाँस से मोती निकलते हैं सो बिरले ही होते हैं, तैसे ही तत्त्वदर्शी ज्ञानवान् कोई बिरला होता है हे रामजी! सम्पूर्ण रचना यहाँ की देखो कि कैसे पर्वत हैं जिनके किसी स्थान में पक्षी रहते हैं, किसी स्थान में विद्याधर रहते हैं, कहीं देवियाँ विलास करती हैं, कहीं योगी रहते हैं और कहीं ऋषीश्वर, मुनीश्वर, कहीं ब्रह्मचारी, वैरागी आदिक पुरुष रहते हैं |
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
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