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हथियारों की गैरकानूनी बिक्री
उच्चतम न्यायालय ने सैन्य अधिकारियों के सेवा में रहने पर उठाया सवाल
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने गैरकानूनी तरीके से हथियारों की बिक्री के धंधे में कथित रूप से लिप्त कुछ सैन्य अधिकारियों के सेवा में काम करने देने के मामले में आज सरकार से कैफियत मांगी। न्यायमूर्ति सुरिन्दर सिंह निज्जर और न्यायमूर्ति एम वाई इकबाल की खंडपीठ ने इन अधिकारियों के खिलाफ पुख्ता सबूत होने के बावजूद इनकी सेवा बरकरार रखने पर सवाल करते हुये कहा, ‘‘इन्हें नौकरी में बने रहने की अनुमति क्यों दी जानी चाहिए।’’ न्यायाधीशों ने हथियारों के इस धंधे में कथित रूप से लिप्त ले. कर्नल और कर्नल रैंक के तीन अधिकारियों का जिक्र करते हुये कहा ये अभी भी सेना में कार्यरत हैं। न्यायाधीशों ने कहा कि ऐसा लगता है कि ये तीन अधिकारी एक उद्योग चला रहे है लेकिन यदि सैन्य कानून की बजाये नागरिक अदालत में इनके खिलाफ कार्यवाही हो रही होती तो शायद इसके परिणाम भिन्न होते। न्यायाधीशों ने इन अधिाकरियों को दी गयी सजा पर ‘अचरज’ व्यक्त किया है। अतिरिक्त सालिसीटर जनरल पारस कुहाट ने कहा कि इन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गयी है ओर इनका दो से चार साल का वेतन जब्त कर लिया गया है। उन्होंने कहा कि पता चला है कि वे कुछ समय बाद के सेना द्वारा उपयोग में नहीं लाये जाने वाले हथियारों की बिक्री में बिचौलिये का काम करते थे। इस मामले की सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार ने दलील दी कि नागरिक अदालतों के लिये इस तरह के मामलों में हस्तक्षेप करने की बहुत कम गुंजाइश रहती है क्योंकि इनमें सैन्य कानून के तहत ही कार्यवाही होती है और सैन्य बल न्यायाधिकरण ही इनमें फैसला करते है। न्यायालय ने इस तरह के गंभीर मामलों में संयुक्त सचिव या अवर सचिव स्तर के अधिकारियों द्वारा हलफनामा दाखिल करने पर भी अप्रसन्नता व्यक्त की। न्यायालय यह भी जानना चाहता था कि क्या ऐसे मामलों में संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत शीर्ष अदालत में याचिका दायर नहीं की जा सकती। इसके साथ ही न्यायालय ने वकील अरविन्द कुमार शर्मा की जनहित याचिका पर सुनवाई दो सप्ताह के लिये स्थगित कर दी। न्यायालय ने केन्द्र सरकार से कहा है कि जनरल कोर्ट मार्शल, कोर्ट आफ इंक्वायरी और अनुच्छेद 32 के तहत इस मामले पर विचार करने के शीर्ष अदालत के अधिकार से संबंधित सारा रिकार्ड और सामग्री पेश की जाये। केन्द्र सरकार ने इससे पहले सुनवाई के दौरान न्यायालय में कहा था कि गैरकानूनी तरीके से हथियारो की बिक्री और संदिग्ध पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को लाइसेंस जारी करने के मामलों में सेना के विभिन्न रैंक के 73 अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाइ्र की गयी है। इन अधिकारियों की निन्दा करने, पदावनति करने और उनके वेतन में वृद्धि रोकने जैसी दंडात्मक कार्रवाई की गयी है। केन्द्र और राजस्थान सरकार ने इस मामले में लगाये गये आरोपों की जांच के संबंध में स्थिति रिपोर्ट पेश की हैं। राजस्थान के अतिरिक्त महाधिवक्त मनीष सिंघवी ने न्यायालय को सूचित किया कि राज्य सरकार ने 14 मामलों की जांच की है और सात मामलों में आरोप पत्र दाखिल किया है। इस याचिका में अनुरोध किया गया है कि सेना के उपयोग में न आने वाले हथियारों की गैरकानूनी तरीके से बिक्री के मामलों में लिप्त अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश सरकार को दिया जाये। यह मामला 2007 में प्रकाश में आया। उस समय अधिकारियों ने यह नोटिस किया कि राजस्थान के गंगानगर जिले में आतंकवादियों, तस्करों और असामाजिक तत्वों को बगैर किसी पुष्टि के लिये स्थानीय अधिकारियों ने लाइसेंस प्रदान किये है। इसके बाद हुयी जांच में एक बड़े धंधे का पता लगा जिसमें सेना के मेजर जनरल रैंक के एक सैन्य अधिकारी और भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी सहित अनेक व्यक्तियों के इसमें लिप्त होने के तथ्य सामने आये। सैन्य अधिकारियों को व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिये आयुद्ध डिपो से एनएसपी श्रेणी के हथियार जारी किये जाते हैं। राज्य सरकार ने न्यायालय में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इस धंधे से करीब 284 व्यक्ति लाभान्वित हुये थे और उनसे पूछताछ की गयी है। इस बीच, रक्षा मंत्रालय ने न्यायालय को सूचित किया था कि इस श्रेणी के हथियार सैन्य अधिकारियों को जारी करने की समूची प्रक्रिया की समीक्षा करने का भी निश्चय किया गया है।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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