Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
इसी प्रकार जोधपुर का किराड़ मन्दिर, उदयपुर का नागदा का सास-बहू का मन्दिर, अर्घूणा का जैन मन्दिर, चित्तौड़ का महाराणा कुम्बा द्वारा निर्मित कीर्तिस्तम्भ, रणकपुर का अनेक कलात्मक खम्भों के लिये प्रसिद्ध जैन मन्दिर, बाड़मेर का किराडू मन्दिर स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। हवेली स्थापत्य की दृष्टि से रामगढ़, नवलगढ़, फतेहपुर की हवेलियां देखते ही बनती हैं। जैसलमेर की पटवों की हवेली तथा नथमल एवं सालमसिंह की हवेली, पत्थर की जाली एवं कटाई के कारण विश्वप्रसिद्ध हो गई। हवेली शैली के आधार पर यहां के वैष्णव मन्दिर भी बड़े प्रसिद्ध हैं। इन हवेलियों के साथ-साथ यहां के हवेली संगीत तथा हवेली-चित्रकला ने बी सांस्कृतिक जगत में अपनी अनूठी पहचान दी है।
चित्रकला की दृष्टि से भी राजस्थान अति समृद्ध है। यहाँ विभिन्न शैलियों के चित्रों का प्रचुर मात्रा में सजृन किया गया। ये चित्र किसी एक स्थान और एक कलाकार द्वारा निर्मित नहीं होकर विभिन्न नगरों, राजधानियों, धर्मस्थलों और सांस्कृतिक प्रतिष्ठानों की देन हैं। राजाओं, सामन्तों, जागीरदारों, श्रेष्ढीजनों तथा कलाकारों द्वारा चित्रकला के जो रुप उद्घाटित हुए वे अपने समग्र रुप में राजस्थानी चित्रकला के व्यापक परिवेश से जुड़े किन्तु कवियों, चितासे, मुसव्विरों, मूर्तिकारों, शिल्पाचार्यों आदि का जमघट दरबारों में होने के कारण राजस्थानी चित्रकला की अजस्र धारा अनेक रियासती शैलियों, उपशैलियों को परिप्लावित करती हुई १७वीं-१८वीं शती में अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंची। अधिकांश रियासतों के चित्रकारों ने जिन-जिन तौर-तरीकों के चित्र बनाए, स्थानानुसार अपनी परिवेशगत मौलिकता, राजनैतिक सम्पर्क, सामाजिक सम्बन्धों के कारण वहां की चित्रशैली कहलाई।
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आपका दोस्त पंकज
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