Re: मुहावरों की कहानी
बाणया की ताखड़ी चाल्यां बो कोई कै सारे कोनी
साभार: अनिल अग्रोहिया
एक बनिया उदास मुंह अपनी दुकान पर बैठा था ,गाँव का ठाकुर उधर से निकला तो उसने पूछा सेठजी आज उदास क्यों बैठे हो। तो बनिया बोला क्या करें आज कल तकड़ी (तराजू) ही नही चलती। इस पर ठाकुर ने व्यंग से कहा कि कल से हमारे अस्तबल में घोड़ों की लीद तोलना शुरू करदो। बनिये ने सहर्ष स्वीकार कर लिया व दुसरे दिन अस्तबल में जाकर हर घोड़े की लीद तोलने लगा। यह देख कर घोड़ों के अधिकारी ने इस का कारण पूछा तो उसने कहा कि तुम ठिकाने से पैसा तो पूरा लेते हो पर दाना कम खिलाते हो , इसी की जाँच पड़ताल की जाएगी। अधिकारी चोरी करता था सो उसने बनिये का महिना बांध दिया और कहा की ठाकुर से मेरी शिकायत मत करना। दूसरी बार जब ठाकुर उक्त बनिए की दुकान के आगे से निकला तो बनिया प्रसन्न चित था क्यों की उसकी तकड़ी चल गयी थी। इसलिये राजस्थानी में कहावत है:
"बाणया की ताखड़ी चाल्यां बो कोई कै सारे कोनी”
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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