हम आज में क्यों नहीं जीते?
हम आज में क्यों नहीं जीते?
(माँ अमृतानंदमयी का प्रवचन)
हममें से अधिकतर लोग क्या भूत के विलाप और भविष्य की चिन्ता में ही जीवन नहीं बिता देते? लगभग सभी वर्तमान क्षण के सुख से वंचित रह जाते हैं। हम जीवन के सौन्दर्य व आनन्द को भूल जाते हैं। यह सब हमारी मनःस्थिति के कारण होता है। हमें एक दरजी जैसा होना चाहिए। यहाँ अम्मा का अभिप्राय यह नहीं कि हमें आजीविका के लिए कपड़े सीना शुरू कर देना चाहिए। हम जितनी बार दरजी के पास जाते हैं, वह हर बार कपड़ों की सिलाई से पहले हमारा नया नाप लेता है। चाहे उसकी डायरी में पिछले महीने ही नाप लिखा गया हो, फिर भी वह दोबारा नाप लेता है ताकि जांच ले कि हमारी बाँहें छोटी-बड़ी तो नहीं हुईं अथवा हमारी लम्बाई आदि बढ़ तो नहीं गई। वह हमारे पुराने नाप पर भरोसा नहीं करता, अपितु वर्तमान नाप के अनुसार ही कपड़े सीता है। बच्चो, तुम्हारा भी दृष्टिकोण ऐसा ही होना चाहिए। हमारे पास केवल यही क्षण है। इसमें अपने पूर्वनिर्धारित मतों के साथ प्रवेश न करो। जब हम भूतकाल पर विलाप करते हुए अथवा भविष्य की चिंता में जीते हैं तो वर्तमान क्षण के सौन्दर्य की अनुभूति से चूक जाते हैं।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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