Re: ~!!चन्द्रकान्ता!!~
देवकीनन्दन खत्री ने समसामयिक नीति-प्रधान उपन्यासों से भिन्न कौतूहल प्रधान ‘तिलिस्मी ऐयारी’ उपन्यास रचना की नयी दिशा को उद्घाटित करने का सफल प्रयास किया। ‘तिलिस्म’ अरबी का शब्द है, जिसका अर्थ है-‘ऐन्द्रजालिक रचना, गाड़े हुए धन आदि पर बनायी हुई सर्प आदि की भयावनी आकृति व दवाओं तथा लग्नों के मेल से बँधा हुआ यन्त्र’। ‘चन्द्रकान्ता’ के चौथे भाग के बीसवें बयान में ऐयार जीतसिंह जरूरत पड़ती थी तो वे बड़े-बड़े ज्योतिषी, नजूमी, वैद्य, कारीगर, तिलिस्म के सम्बन्ध में कहता है-‘‘तिलिस्मी वही शख्स तैयार करता है, जिसके पास बहुत माल-खजाना हो और वारिस न हो।...पुराने जमाने के राजाओं को जब तिलिस्मी बाँधने की आवश्यकता होती थी तब ज्योतिषी, कारीगर और तांत्रिक लोग इकट्ठे किये जाते थे। उन्हीं लोगों के कहे मुताबिक तिलिस्मी बाँधने के लिए जमीन खोदी जाती थी, उसी जमीन के अन्दर खजाना रखकर ऊपर तिलिस्मी इमारत बनायी जाती थी। उसमें ज्योतिषी, नजूमी, वैद्य, कारीगर और तांत्रिक लोग अपनी ताकत के मुताबिक उसके छिपाने की बंदिश करते थे मगर इसके साथ ही उस आदमी के नक्षत्र एवं ग्रहों का भी खयाल रखते थे, जिसके लिए वह खजाना रक्खा जाता था।’’
‘ऐयार’ शब्द भी अरबी का है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- धूर्त अथवा वेश या रूप बदलकर अनोखे काम करने वाला व्यक्ति। ‘ऐयार’ उसको कहते हैं जो हर एक फन जानता हो, शक्ल बदलना और दौड़ना उसके मुख्य काम हैं। ऐयारों के सम्बन्ध में खत्री जी ने ‘चन्द्रकान्ता’ की भूमिका में लिखा है- राजदरबारों में ऐयार भी नौकर होते थे जो कि हरफनमौला, यानी सूरत बदलना, बहुत-सी दवाओं का जानना, गाना-बजाना, दौड़ना, अस्त्र चलाना, जासूसों का काम करना, वगैरह बहुत-सी बातें जाना करते थे। जब राजाओं में लड़ाई होती थी तो ये लोग अपनी चालाकी से बिना खून बहाये व पलटनों की जाने गंवाये लड़ाई खत्म करा देते थे।’’ ’चन्द्रकान्ता’ में लेखक चुनार के बाहर के खण्डहर के तिलिस्म का वर्णन करता है, जहाँ काले पत्थर के खम्भे पर संगमरमर का बगुला है जो किसी के पास आते ही मुँह खोल लेता है और उसे उदरस्थ कर लेता है। चन्द्रकान्ता को यही बगुला निगल लेता है तथा वह तिलिस्म में कैद हो जाती है। उसकी सखी चपला का भी यही हाल होता है। इस तिलिस्म के विषय में एक सुर्ख पत्थर पर लिखा है-‘यह तिलिस्म है, इसमें फंसने वाला कभी बाहर नहीं निकल सकता। हाँ, अगर कोई इसको तोड़े तो सब कैदियों को छुड़ा ले और दौलत भी उसके हाथ लगे। तिलिस्म तोड़ने वाले के बदन में खूब ताकत भी होनी चाहिए, नहीं तो सारी मेहनत व्यर्थ है।’ इस तिलिस्म को तोड़ने की विधि भी एक पुस्तक में लिखी मिलती है, जिसका अर्थ तेजसिंह और ज्योतिषीजी रमल की सहायता से ज्ञात करते हैं। इस पुस्तक की प्राप्ति से वीरेन्द्रसिंह अपने ऐयार साथियों की मदद से अनेक कठिनाइयों, बाधाओं एवं संघर्षों का सामना करता हुआ तिलिस्म को तोड़ने में सफल होता है और चन्द्रकान्ता को मुक्त कराता है। उपन्यास के तीसरे और चौथे हिस्से में मुख्य रूप से इसी तिलिस्मी को तोड़ने की कथा रोचक, कौतूहल पूर्ण और अद्भुत वर्णन है। वनकन्या, सूरजमुखी आदि पात्रों का सृजन और उनके कार्य उपन्यास में रोचकता और कौतूहल की वृद्धि करते हैं। कौतूहल प्रेमी पाठकों को विशेषकर यह अंदाजा लगाने में भी काफी आनन्द आता है कि कब कौन सा ऐयार क्या करामात दिखा रहा है। कई पात्रों के चलते यह कार्य काफी चुनौती भरा बन जाता है। इसी श्रृंखला में भूतनाथ तो सबसे गूढ़ पात्र बन जाता है, यहाँ तक उसके चरित्र को सही प्रकार समझाने के लिए देवकीनन्दन खत्री जी को एक और 23 खण्डों का उपन्यास भूतनाथ लिखना पड़ गया। भूतनाथ और रोहतासमठ दोनों पुस्तकें पुस्तक.आर्ग के द्वारा उपलब्ध हैं।
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