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Old 08-12-2010, 12:23 PM   #9
ABHAY
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Post Re: ~!!चन्द्रकान्ता!!~

‘माफ करो मुझसे बड़ा कसूर हुआ, अब मैं ऐसा कभी न करूँगा बल्कि इस काम का नाम भी न लूँगा !’’ इत्यादि कहकर नाजिम चिल्लाने और रोने लगा, मगर चपला कब सुनने वाली थी ? वह कोड़ा जमाये ही गयी और बोली, ‘‘सब्र कर, अभी तो तेरी पीठ की खुजली भी न मिटी होगी ! तू यहाँ क्यों आया था ? क्या तुझे बाग की हवा अच्छी मालूम हुई थी ? क्या बाग की सैर को जी चाहा था ? क्या तू नहीं जानता था कि चपला भी यहाँ होगी ? हरामजादे के बच्चे, बेईमान, अपने बाप के कहने से तूने यह काम किया ? देख मैं उसकी भी तबीयत खुश कर देती हूँ !’’ यह कहकर फिर मारना शुरू किया, और पूछा, ‘‘सच बता, तू कैसे यहाँ आया और चम्पा कहाँ गई ?’’

मार के खौफ से नाजिम को असल हाल कहना ही पड़ा। वह बोला, ‘‘चम्पा को मैंने ही बेहोश किया था, बेहोशी की दवा छिड़ककर फूलों का गुच्छा उसके रास्ते में रख दिया जिसको सूँघकर वह बेहोश हो गयी, तब मैंने उसे मालती लता के कुंज में डाल दिया और उसकी सूरत बना उसके कपड़े पहन तुम्हारी तरफ चला आया। लो, मैंने सब हाल कह दिया, अब तो छोड़ दो !’’

चपला ने कहा, ‘‘ठहर, छोड़ती हूँ।’’ मगर फिर भी दस पाँच कोड़े और जमा ही दिये, यहाँ तक की नाजिम बिलबिला उठा, तब चपला ने चन्द्रकान्ता से कहा, ‘‘सखी, तुम इसकी निगहबानी करो, मैं चम्पा को ढूँढ़कर लाती हूँ। कहीं वह पाजी झूठ न कहता हो!’’

चम्पा को खोजती हुई चपला मालती लता के पास पहुँची और बत्ती जलाकर ढ़ूँढ़ने लगी। देखा की सचमुच चम्पा एक झाड़ी में बेहोश पड़ी है और बदन पर उसके एक लत्ता भी नहीं है। चपला उसे लखलखा सुँघाकर होश में लायी और पूछा, ‘‘क्यों मिजाज कैसा है, खा गई न धोखा।’’

चम्पा ने कहा, ‘‘ मुझको क्या मालूम था कि इस समय यहाँ ऐयारी होगी? इस जगह फूलों का एक गुच्छा पड़ा था जिसको उठाकर सूंघते ही मैं बेहोश हो गयी, फिर न मालूम क्या हुआ ! हाय, हाय ! न जाने किसने मुझे बेहोश किया, मेरे कपड़े भी उतार लिए, बड़ी लागत के कपड़े थे !’’

वहाँ पर नाजिम के कपड़े पड़े हुए थे जिनमें से दो एक लेकर चपला ने चम्पा का बदन ढंका और तब यह कहकर की ‘मेरे साथ आ, मैं उसे दिखलाऊँ जिसने तेरी यह हालत की’ चम्पा को साथ ले उस जगह आई जहाँ चन्द्रकान्ता और नाजिम थे। नाजिम की तरफ इशारा करके चपला ने कहा, देख, इसी ने तेरे साथ यह भलाई की थी !’’ चम्पा को नाजिम की सूरत देखते ही बड़ा क्रोध आया और वह चपला से बोली, ‘‘बहन अगर इजाजत हो तो मैं भी दो चार कोड़े लगा कर अपना गुस्सा निकाल लूँ?’’

चपला ने कहा, ‘‘हाँ, हाँ, जितना जी चाहे इस मुए को जूतियाँ लगाओ !’’ बस फिर क्या था, चम्पा ने मनमाने कोड़े नाजिम को लगाये, यहाँ तक कि नाजिम घबड़ा उठा और जी में कहने लगा, ‘‘खुदा, क्रूरसिंह को गारत करे जिसकी बदौलत मेरी यह हालत हुई !’’

आखिरकार नाजिम को उसी कैदखाने में कैद कर तीनों महल की तरफ रवाना हुई। यह छोटा-सा बाग जिसमें ऊपर लिखी बातें हुईं, महल के संग सटा हुआ उसके पिछवाड़े की तरफ पड़ता था और खास कर चन्द्रकान्ता के टहलने और हवा खाने के लिए ही बनवाया गया था। इसके चारों तरफ मुसलमानों का पहरा होने के सबब से ही अहमद और नाजिम को अपना काम करने का मौका मिल गया था।
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