Re: ~!!चन्द्रकान्ता!!~
चौथा बयान
तेजसिंह वीरेन्द्रसिंह से रूखसत होकर विजयगढ़ पहुँचे और चन्द्रकान्ता से मिलने की कोशिश करने लगे, मगर कोई तरकीब न बैठी, क्योंकि पहरे वाले बड़ी होशियारी से पहरा दे रहे थे। आखिर सोचने लगे कि क्या करना चाहिए? रात चाँदनी है, अगर अंधेरी रात होती तो कमंद लगाकर ही महल के ऊपर जाने की कोशिश की जाती।
आखिर तेजसिंह एकान्त में गये और वहाँ अपनी सूरत एक चोबदार की-सी बना महल की ड्योढ़ी पर पहुँचे। देखा कि बहुत से चोबदार और प्यादे बैठे पहरा दे रहे हैं। एक चोबदार से बोले, ‘‘यार, हम भी महाराज के नौकर हैं, आज चार महीने से महाराज हमको अपनी अर्दली में नौकर रक्खा है, इस वक्त छुट्टी थी, चाँदनी रात का मजा देखते-टहलते इस तरफ आ निकले, तुम लोगों को तम्बाकू पीते देख जी में आया कि चलो दो फूँक हम भी लगा लें, अफीम खाने वालों को तम्बाकू की महक जैसी मालूम होती है आप लोग भी जानते ही होंगे !’’
‘‘हाँ, हाँ, आइए, बैठिए, तम्बाकू पीजिए !’’कहकर चोबदार और प्यादों ने हुक्का तेजसिंह के आगे रक्खा। तेजसिंह ने कहा, ‘‘मैं हिन्दू हूँ, हुक्का तो नहीं पी सकता, हाँ, हाथ से जरूर पी लूँगा।’’ यह कह चिलम उतार ली और पीने लगे।
उन्होंने दो फूँक तम्बाकू के नहीं पिये थे कि खाँसना शुरू किया, इतना खांसा कि थोड़ा-सा पानी भी मुँह से निकाल दिया और तब कहा, ‘‘मियां तुम लोग अजब कड़वा तम्बाकू पीते हो? मैं तो हमेशा सरकारी तम्बाकू पीता हूँ। महाराज के हुक्काबर्दार से दोस्ती हो गयी है, वह बराबर महाराज के पीने वाले तम्बाकू में से मुझको दिया करता है, अब ऐसी आदत पड़ गयी है कि सिवाय उस तम्बाकू के और कोई तम्बाकू अच्छा नहीं लगता !’’
इतना कह चोबदार बने हुए तेजसिंह ने अपने बटुए में से एक चिलम तम्बाकू निकालकर दिया और कहा, ‘‘तुम लोग भी पीकर देख लो कि कैसा तम्बाकू है।
भला चोबदारों ने महाराज के पीने का तम्बाकू कभी काहे को पिया होगा। झट हाथ फैला दिया और कहा, ‘‘लाओ भाई, तुम्हारी बदौलत हम भी सरकारी तम्बाकू पी लें। तुम बड़े किस्मतवार हो कि महाराज के साथ रहते हो, तुम तो खूब चैन करते होगे !’’ यह नकली चोबदार (तेजसिंह) के हाथ से तम्बाकू ले लिया और खूब दोहरा जमाकर तेजसिंह के सामने लाए ! तेजसिंह ने कहा, ‘‘तुम सुलगाओ, फिर मैं भी ले लूँगा।’’
अब हुक्का गुड़गुड़ाने लगा और साथ ही गप्पें भी उड़ने लगीं।
थोड़ी ही देर में सब चोबदार और प्यादों का सर घूमने लगा, यहाँ तक कि झुकते-झुकते सब औंधे होकर गिर पड़े और बेहोश हो गये।
अब क्या था, बड़ी आसानी से तेजसिंह फाटक के अन्दर घुस गये और नजर बचाकर बाग में पहुँचे। देखा कि हाथ में रोशनी लिए सामने से एक लौंडी चली आ रही है। तेजसिंह ने फुर्ती से उसके गले में कमन्द डाली और ऐसा झटका दिया कि वह चूं तक न कर सकी और जमीन पर गिर पड़ी। तुरन्त उसे बेहोशी की बुकनी सुँघाई और जब बेहोश हो गयी तो उसे वहां से उठाकर किनारे ले गये। बटुए में से सामान निकाल मोमबत्ती जलाई और सामने आईना रख अपनी सूरत उसी के जैसी बनाई, इसके बाद उसको वहीं छोड़ उसी के कपड़े पहन महल की तरफ रवाना हुए और वहाँ पहुँचे जहाँ चन्द्रकान्ता, चपला और चम्पा दस पाँच लौंडियों के साथ बातें कर रही थीं। लौंड़ी की सूरत बनाये हुए तेजसिंह भी एक किनारे जा कर बैठ गये।
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