Quote:
Originally Posted by rajnish manga
रजत जी ने भी चर्चा में भाग लेते हुए पवित्रा जी द्वारा व्यक्त किये गए विचारों से मतैक्य प्रगट किया.
|
मतैक्य होने का कारण ही यही है कि हमारे बीच मतभिन्नता होती ही नहीं। जो इनके विचार होते हैं, वही मेरे विचार होते हैं। जो मैं कहना चाहता हूँ, वह यह यदि मुझसे पहले कह देतीं हैं तो एक ही विचार को दूसरे शब्दों में दोहराने का कोई न्यायसंगत औचित्य नहीं रह जाता। अतः मतैक्य प्रकट करना ही उचित एवं न्यायसंगत है।