Re: इधर-उधर से
कितनी महँगी शादी?
आजकल शादी-ब्याह का खर्च इतना बढ़ गया है कि सोच सोच कर हैरानी होती है. कुछ तो महंगाई इतनी हो गयी है और कुछ समाज में देखा-देखी दिखावा भी बढ़ गया है. हर आदमी अपने बूते से बाहर जा कर अपने बच्चों (खास तौर पर लड़कियों) की शादी पर खर्च करना चाहता है, चाहे मजबूरी में ही सही. इसका सबसे ज्यादा असर उन माता-पिता पर पड़ता है जो अधिक साधन-संपन्न नहीं हैं.
पिछले दिनों हमारी रिश्तेदारी में ही एक शादी तय हुयी थी. लड़की के पिता नहीं थे. उसकी माँ तथा वह स्वयं नौकरी करते थे और परिवार का खर्च चलाते थे. दोनों पक्षों ने अपने अपने तरीके से शादी की तैयारियाँ शुरू कर दी. पहले लड़के वालों ने लड़की को लहंगा पसंद करने और नापजोख के लिए एक शोरूम में बुलवाया गया, ताकि समय रहते यह तैयार हो जाये.
कुछ दिनों बाद लड़के की माँ ने लड़की की माँ को फोन किया. बातचीत में उसने पूछ लिया कि क्या आपने भी (शादी से जुड़े एक अन्य फंक्शन के लिए) लड़की का लहंगा खरीद लिया है? इस पर वह बेचारी बोल उठी, “बहनजी, हम लहंगा नहीं खरीद रहे, बल्कि लहंगा किराए पर ही ले लेंगे. एक दिन के लिए इतना खर्च हम नहीं कर सकते. इस पर लड़के की माँ ने ऐतराज़ करते हुए कहा कि हम नहीं चाहते कि हमारी बहु ऐसा लहंगा पहने जो अन्य लड़कियों द्वारा भी पहले पहना जा चुका हो. इसके अतिरिक्त एक दो मसलों पर और विवाद उठ खड़ा हुआ.
बस फिर क्या था? बात बढ़ते बढ़ते इतनी बढ़ी कि सम्हल न सकी. अन्ततः कुछ दिन बाद वह रिश्ता ही टूट गया.
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
|