हम पैसे के पीछे पड़े रहतें है। जिंदगी के हर कदम पैसे की ज़रुरत या उसके न होने का डर बना रहता है। हम ईस पैसे की तुलना लक्ष्मी मां, कुबेर का भंडार, अल्लाह की बरकत वगैरह से करतें है। ताकि उसकी महिमा, ईज़्जत हमारें मन में बनी रहे। फिर उसे कमाने के लिये, पाने के लिये कई एसे काम करतें है जो सुक्ष्म हिंसा से कई अधिक नकारात्मक होतें है, जिन्हें करने को हमारे सभी धर्मों में मना किया है।