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Old 25-08-2020, 10:37 AM   #1
आकाश महेशपुरी
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Default नाजुक हैं हालात (छंदमुक्त कविता)

नाजुक हैं हालात (छंदमुक्त कविता)
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इतने नाजुक है हालात आजकल यारों
लगता है हो जाऊंगा पागल यारों

नफरत का मौसम है लालच की आंधी
ना कोई गौतम है ना कोई गांधी
है दौलत ही इज्जत कानून भी रिश्वत
हम शरीफ लोगों की नहीं कोई कीमत
जिंदगी एक दर्द है हर पल यारों
लगता है हो जाऊंगा पागल यारों

किसी का नहीं कोई सब अपने-अपने हैं
जो देखे हैं हमने वे झूठे सपने हैं
मुस्कान भी झूठी है वादे भी झूठे हैं
ऊपर से हँसते हैं अंदर से रूठे हैं
ये पूरी दुनिया है एक दलदल यारों
लगता है हो जाऊंगा पागल यारों

दर्द बढ़ने लगा जहर चढ़ने लगा
घायल पे वार हर कोई करने लगा
दिल डरने लगा चैन मरने लगा
मुहब्बत का आशियाना बिखरने लगा
है मची देखो कैसी हलचल यारों
लगता है हो जाऊंगा पागल यारों

रचना- आकाश महेशपुरी
कुशीनगर, उत्तर प्रदेश
मो- 9919080399
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* यह रचना मेरे प्रथम काव्य संग्रह "सब रोटी का खेल" से ली गयी है। यह पुस्तक मेरे द्वारा शुरुवाती दिनों में लिखी गयी रचनाओं का हूबहू संकलन है।

Last edited by आकाश महेशपुरी; 25-08-2020 at 11:10 AM.
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