Re: मैं हूँ आकाश में उड़ता बादल
[QUOTE=rajnish manga;557034]आकाश में उड़ते हुए श्वेत बादलों को देख कर आपने अपनी कविता में न सिर्फ प्रकृति के धवल स्वरूप की सुंदरता का चित्रण किया है बल्कि धरती के जन जीवन, पशु-पक्षियों और वनस्पतियों को बनाये रखने के लिए अपने निस्वार्थ योगदान के माध्यम से मनुष्य को सीख देने का सुंदर प्रयास भी किया है. कविता का सबसे महत्वपूर्ण भाग वह है जहाँ आपने बढ़ते प्रदूषण के दुष्प्रभाव में बादलों और बारिश में आयी कमीं का ज़िक्र किया गया है. अब तो जीवन प्रदान करने वाली शक्तियां ही चिंताजनक अवस्था में दिखाई दे रही हैं.
[size=3]"पहले की तरह अब चाह के भी बरसना अब तो कठिन हुआ
ग्लोबल वोर्मींग ने नमी सोख ली, पग में छाले ही छाले हैं यह दुखद स्थिति है"
अतः इसको सुधारने के लिए वैश्विक स्तर पर कारगर उपाय करने की आवश्यकता है. इस प्रकार एक उद्देश्यपूर्ण कविता फोरम पर साझा करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद, बहन पुष्पा जी. [
हार्दिक धन्यवाद भाई , जी बस मन के ख्यालों को शब्दों का रूप दे दिया जिसके यथार्थ को आपने जाना समझा और इस कविता की मूल भावना को और सराहा भाई सच भगवान ने हम इंसानों के लिए कितनी सुन्दर दुनिया बनाई है पर उसे सहेजने की बजाय हमने उसके असली स्वरुप से ही उसे वंचित कर दिया है जब प्रकृति के सान्निध्य में हम होते हैं तब एक अनोखी शांति का एहसास होता है जिसे हम दिन ब दिन खोते चले जा रहे हैं एइसा ही कुछ एहसास हुआ था मुझे भाई और यह कविता बन गई ..
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