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Old 15-08-2013, 10:03 PM   #6
rajnish manga
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Default Re: ये शाम और तुम ...

..... गुलाबी दीवारें इंतज़ार करेंगी कीलों का...उनपर मुस्कुराते लोगों की तस्वीरोंका...कैलेण्डर का...इधर उधर से लायी शोपीसेस का...कुछ मुखोटे...कुछ नयी पेंटिंग्सका...दीवारों को मालूम नहीं होगा कि मैं घर में यादों के सिवाए किसी को रहने नहींदेतीं....

... नयी सड़क पर निकलती हूँ...शाम भी दबे पाँव पीछे हो ली है...सोच रहीहै कि ऐसा क्या कहे जो इस मौन की दीवार को तोड़ सके...मैं शाम को अच्छी लगीहूँ...पर मैं सबको ही तो अच्छी लगती हूँ एक तुम्हारे सिवा...या ठहरो...तुम्हें भीतो अच्छी लगती थी पहले. वसंत के पहले का मौसम है...सूखे पत्ते गिर कर हमारे बीच कुछशब्द बिखेरने की कोशिश करते हैं...पूरी सड़क पर बिखरे हुए हैं टूटे हुए, घायलशब्द...मरहमपट्टी से परे...अपनी मौत के इंतज़ार में...सुबह सरकारी मुलाजिम आएगा तोउधर कोने में एक चिता सुलगायेगा...तब जाकर इन शब्दों की रूह को चैनआएगा....

इस शहर के दरख़्त मुझे नहीं जानते...उनके तने पर कच्ची हैण्डराइटिंगमें नहीं लिखा हुआ है मेरा नाम...वो नहीं रोये और झगड़े है तुमसे...वो नहीं जानतेहमारे किसी किस्से को...ये दरख़्त बहुत ऊँचे हैं...पहाड़ों से उगते आसमान तकपहुँचते...इनमें बहुत अहंकार है...या ये भी कह सकते हो कि इन बूढ़े पेड़ों ने बहुतदुनिया देखी है ....

...ताखे के ऊपर से थोड़ी कालिख उठाती हूँ और कहती हूँ कि इश्वर उसकी कलम में हमेशासियाही रहे...उसकी आँखों में हमेशा रौशनी और उसके मन में हमेशा विश्वास कि साँस कीआखिरी आहट तक मैं उससे प्यार करती रहूंगी....

...इस घर ने अपनी आदतें कहाँ बदलीं...शाम घर की अनगिनत दीवारों को टटोलती हुयी मुझेढूंढती रही और आखिर उसकी भी आँखें बुझ गयीं...

...चाँद का चौरस बटुआ खिड़की से अन्दर औंधे गिरा है...कुछ चिल्लर मुस्कुराहटें कमरेमें बिखर गयी हैं...बटुए में मेरी तस्वीर लगी है...ओह...अब मैं समझी...तुम्हें चाँदसे इर्ष्या थी...कि वो भी मुझसे प्यार करता है...बस इसलिए तुमने शाम से रिश्ता तोड़लिया...मुझसे खफा हो बैठे...

...तुम्हें इश्क में पास होना है तो मुझसे सीखो इश्क करना...निभाना...सहना...औरथोड़ा पागलपन सीखो मुझसे...कि प्यार में हमेशा जो सही होता है वो सही नहींहोता...कभी कभी गलतियाँ भी करनी पड़ती हैं...बेसलीका होना होता है...हारना होताहै...टूटना होता है. मुश्किल सब्जेक्ट है...पर रोज शाम के साथ आओगे और दोनों गालोंपर बोसे दोगे तो जल्दी ही तुम्हें अपने जैसा होशियार बना दूँगी...जब मेरी बराबरी केहो जाओगे तब जा के फिर से प्रपोज करना हमको...फिर सोचूंगी...तुम्हें हाँ कहूँ या न.

कथानक के बरक्स कहानी की भाषा इतनी चुस्त, जीवंत और अल्हड़ है कि सबसे पहले उसी पर पाठक का ध्यान अटक जाता है. मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि यहां पर वातावरण का निर्माण जैसे किसी छायावादी कवि की देखरेख में किया गया है, जिसके उदाहरण आपको उपरोक्त वाक्यांशों में यहां वहां बिखरे हए मिल जायेंगे.

अब कुछ शब्द कथानक के बारे में. यह कहानी अलहदगी (या वियोग?) से शुरू हो कर फ्लेशबैक के सहारे दीवारों, कमरों, सड़कों, पेड़ों आदि की धड़कनों और सोचों के बीच से रास्ता बनाती हुई आगे बढ़ती है. इसके बावजूद ऐसा कहीं नहीं लगता कि नायिका का बयान उसकी निराशा से उत्पन्न हुआ है, बल्कि वह तो कथा के अंत में आ कर शरारत के मूड में आ कर (ख्यालों-ख्यालों में) अपने से काफी छोटी उम्र के अपने बिछुड़े हुये साथी को प्यार के कई टोटके तजवीज़ करती है. कहानी नारी और पुरुष के परस्पर प्रेम सम्बन्धों का एक नया आयाम प्रस्तुत करती है. अंत में नायिका अपने बिछुड़े हुये प्रेमी के प्रति प्यार का इज़हार करती है, अपना कमिटमेंट दोहराती है और उसे उम्र भर निभाने का अहद लेती है.


एक श्रेष्ठ कहानी प्रस्तुत करने के लिए आपका धन्यवाद, जय जी.

Last edited by rajnish manga; 15-08-2013 at 10:14 PM.
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