Re: ये शाम और तुम ...
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Originally Posted by rajnish manga
कथानक के बरक्स कहानी की भाषा इतनी चुस्त, जीवंत और अल्हड़ है कि सबसे पहले उसी पर पाठक का ध्यान अटक जाता है. मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि यहां पर वातावरण का निर्माण जैसे किसी छायावादी कवि की देखरेख में किया गया है, जिसके उदाहरण आपको उपरोक्त वाक्यांशों में यहां वहां बिखरे हए मिल जायेंगे.
अब कुछ शब्द कथानक के बारे में. यह कहानी अलहदगी (या वियोग?) से शुरू हो कर फ्लेशबैक के सहारे दीवारों, कमरों, सड़कों, पेड़ों आदि की धड़कनों और सोचों के बीच से रास्ता बनाती हुई आगे बढ़ती है. इसके बावजूद ऐसा कहीं नहीं लगता कि नायिका का बयान उसकी निराशा से उत्पन्न हुआ है, बल्कि वह तो कथा के अंत में आ कर शरारत के मूड में आ कर (ख्यालों-ख्यालों में) अपने से काफी छोटी उम्र के अपने बिछुड़े हुये साथी को प्यार के कई टोटके तजवीज़ करती है. कहानी नारी और पुरुष के परस्पर प्रेम सम्बन्धों का एक नया आयाम प्रस्तुत करती है. अंत में नायिका अपने बिछुड़े हुये प्रेमी के प्रति प्यार का इज़हार करती है, अपना कमिटमेंट दोहराती है और उसे उम्र भर निभाने का अहद लेती है.
एक श्रेष्ठ कहानी प्रस्तुत करने के लिए आपका धन्यवाद, जय जी.
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निश्चित ही बन्धु, आप कलम के जादूगर हैं। निश्चित ही आप लेखक हैं, निश्चित ही आप कवि हैं और जिस प्रकार से आप लेख के बीच से चुनिन्दा वाक्यांश ग्रहण करते हैं वह आपमें किसी बड़े समाचारपत्र के प्रमुख स्तंभकार की छवि परिलक्षित करता है।
सच में .. जब मैंने इस कथानक को पहली बार पढ़ा था तो इन्ही नीले शब्दों में लिपटे हुए भावों में मुझे आकृष्ट किया था। इन्ही से भाव-विभोर होकर मैंने इस नन्ही सी रचना को पटल पर रखा था। आपकी उपरोक्त प्रस्तुति इस लेख को देखने/पढने वाले वाले हजारों पाठकों की अनुभूति समेटे हुए है। कथा प्रस्तोता आत्ममुग्ध होगया है। आभार बन्धु।
Last edited by jai_bhardwaj; 17-08-2013 at 07:18 PM.
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