छोटी सी कश्ती
न उलझ जाऊं इस जहाँ के आडम्बरों में जब हो कभी मन की चंचललता
न कर बैठूं कोई अपराध जब मन की हो अधीरता
न जाऊं आड़े टेढ़ रास्तों पर मैं ओ मेरी किस्मत के बनाने वाले ,
बस बिनती तुझसे है इतनी चले आना आके तू सब संभाले
न छद्मवेशी इस दुनिया का छद्म एहसास और,
न कभी खोना चाहूँ उन छद्म एहसासो की सांसों में
न पाए ज़िन्दगी के ये झरोखे किसी ऐसे एहसास को जिनमे
न सच का साथ और न कोई विश्वास हो।
न घिर जाऊ कभी आकर्षणों के भरम में
न जगे प्यास कभी उस चकाचौंध के रमण में
न कर बैठूं गुनाह कोई लोभ में
न दिल दुखे कीसी का किसी मोह में
न चाह हो धन पराया हड़पने की
हे ईश्वर गर भटक भी जावूं राहें , मंज़िले मैं अपनी
आकर संभाल लेना ये छोटी सी कश्ती मेरी।
Last edited by soni pushpa; 28-06-2017 at 01:49 AM.
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