Quote:
Originally Posted by amol
आइए जानें क्या बदला आम लोगों के इस गुस्से ने-
कानूनों की समीक्षा के लिए समिति
जनता के बढ़ते विरोध प्रदर्शन को देखते हुए सरकार ने यौन उत्पीड़न मामलों में मौजूदा क़ानूनों की समीक्षा के लिए रविवार 23 दिसंबर को एक अधिसूचना जारी की. भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय समिति ने मौजूदा क़ानूनों में संभावित संशोधन पर 30 दिनों में सुझाव मांगे गए हैं. भारतीय जनता पार्टी इस तरह के अपराध के लिए मौत की सजा़ के पक्ष में है.
पुलिस वाले निलंबित
मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे को दुहाई देनी पड़ी कि उनकी भी बेटियां हैं. लचर कानून व्यवस्था पर सवाल उठे और दिल्ली पुलिस आयुक्त को हटाने की मांग हुई लेकिन गाज गिरी दो सहायक पुलिस आयुक्तों पर जिन्हें निलंबित कर दिया गया है. इसके अलावा दो पुलिस उपायुक्तों को कारण बताओ नोटिस थमाया गया है. छह सिपाही, एक हवलदार और एक सब-इंस्पेक्टर को भी निलंबित किया गया है.
नोडल अधिकारी की नियुक्ति
सामूहिक बलात्कार की घटना के सात दिन बाद उप राज्यपाल तेजिंदर खन्ना ने कई कदमों की घोषणा की है. महिलाओं की शिकायत पर पुलिस की ओर से सख्त कार्रवाई करने की बात कही गई है. विशेष आयुक्त सुधीर यादव को महिला संगठनों से बात करने के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है और शिकायतों के लिए एक मोबाइल नंबर जारी किया गया है.
चरित्र-सत्यापन की कवायद
दिल्ली में ड्राइवरों के चरित्र-सत्यापन पर जोर दिया जा रहा है और कहा गया कि पुष्टि होने के बाद ही उन्हें लाइसेंस दिया जाएगा. इसके अलावा, उपराज्यपाल हर महीने के आखिरी शुक्रवार को शाम चार बजे शिकायतों की सुनवाई करेंगे. दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के नियंत्रण में लाने की मांग भी उठी, लेकिन इस बारे में अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है.
आला अधिकारियों की बैठक
गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने जनवरी के पहले हफ्ते में राज्यों के पुलिस महानिदेशकों और मुख्य सचिवों की बैठक बुलाई है. इसमें महिला यौन उत्पीड़न से संबंधित मामलों में मौजूदा कानूनों में संशोधन पर उनकी राय ली जाएगी. गृहमंत्री का कहना है कि संबंधित कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव संसद में पेश किया जाएगा जिसमें बलात्कारियों के लिए सख्त सज़ा का प्रावधान होगा.
Source :: Bbc
|
क्या हिंसा के शिकार हुये व्यक्तियो की चोट और पीडा भी कुछ बद्ल सकेगी...?? इस तरह के हिंसक प्रदर्शन अब और नही होंगे...?? उन लोगो को आन्दोलन शुरु करने का क्या हक होना चाहिये...जो कि उस आन्दोलन की दिशा को सही ना रख सके...??